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सीलूँगा।
'जे एगं जाणई, ते सव्वं जाणई।' जो एक आत्मा को जान लेता है, उसे फिर कुछ-और जानना शेष नहीं रहता। एक आत्मा सर्वोपरि है, सर्व-शक्तिमान है। ताश के खेल में एक पत्ता दूसरे पत्ते को हरा देता है। नहले को दहला हरा देता है तो दहले को गुलाम, गुलाम को बीबियाँ हरा देती हैं, तो बीबियों को बादशाह हरा देता है और बादशाह को इक्का हरा देता है, मगर इक्का को कोई नहीं हरा पता। इक्का सर्वोपरि है, एक आत्मा सर्वोपरि है। जिसने आत्मशक्ति को, आत्मबल को पहचान लिया, वह अजेय हो जाता है, फिर कर्म उसे पराजित नहीं कर पाते।
आत्मा को पहचान लेने पर सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है और सम्यग्दर्शन से ही मोक्षमार्ग की शुरूआत होती है। मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी। देखो, मनुष्य पर्याय तो संसार-संकटों से छूटने का उपाय बना लेने वाला समय है। कितना श्रेष्ठ जैनकल प्राप्त हआ है। यदि इस सलझने के समय भी उलझन बढाते रहे. तो कभी भी संसार-चक्र की उलझनों से छूट नहीं सकते। अतः व्यर्थ में समय बर्बाद मत करो और सम्दग्दर्शन प्राप्त कर, श्रावक धर्म व मुनिधर्म का पालन कर, मोक्षमार्ग पर चलते हुये, इस मनुष्यभव रूपी रत्न की जो असली कीमत मोक्ष है, उसे प्राप्त करने का पुरुषार्थ करो।
एक मनुष्य समुद्र के किनारे बैठा था। उसके हाथ में अचानक एक थैली आयी। उस थैली में रत्न भरे थे, जो उसे अंधेरे में दिखाई नहीं दिये और वह रत्नों के साथ खेल खलेने लगा। एक के बाद एक रत्न को समुद्र में फेकने लगा। वह जैसे ही आखरी रत्न फेकनेवाला था, तभी किसी सज्जन पुरुष ने उसे आवाज दी
अरे भाई ठहर! रत्न फेक मत देना, तेरे हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, वह तो बहुत कीमती रत्न है।
जब थोड़ा प्रकाश हुआ और उजाले में वह मनुष्य उस सज्जन पर विश्वास करके हाथ की वस्तु को सामने लाकर देखता है, तो वह चकित रह जाता है। वह क्या देखता है कि जगमगाता हुआ महान रत्न उसके हाथ में है, तब वह
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