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उसने कहा-साहब! गेहूँ तो बहुत पैदा हुआ था न, चिड़िया तो एक-एक दाना ही लेकर जाती है। जब गेहूँ पूरी तरह खाली हो, तब ही तो कहानी समाप्त होगी न?
आखिर में उसने कहा कि हुजूर जब आपकी यह फिर-फिर बाजी समाप्त होगी, तब मेरी यह फुर-फुरबाजी समाप्त होगी।
इसी प्रकार कहानी सिद्धों में समाप्त थोड़े ही हुई। वे तो अनन्त काल तक अनन्तसुखी मोक्ष में (सिद्धशिला पर) ही रहेंगे। यह ऐसी कहानी है जो कभी समाप्त नहीं होती।
आत्मा का समस्त कर्मबन्धनों से सर्वथा छूट जाना ही मोक्ष है। वह मोक्ष दो प्रकार का है-द्रव्य मोक्ष और भाव मोक्ष । आत्मा का जो परिणाम समस्त कर्मबन्ध
नों के क्षय में कारण है, वह भावमोक्ष है और आत्मा से समस्त कर्मों का अत्यन्त छिन्न (दूर) हो जाना द्रव्यमोक्ष है। वह द्रव्यमोक्ष अयोगकेवली के अन्तिम समय में होता है। वह मोक्ष शुद्ध आत्मा का स्वरूप ही है। जैसे स्वर्ण से आंतरिक और बाह्य मैल निकल जाने पर स्वर्ण के स्वाभाविक गुण चमक उठते हैं, वैसे ही कर्मबंधन से सर्वथा छूट जाने पर आत्मा स्वाभाविक रूप में स्थिर हो जाता है। श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने लिखा है 'अन्तरंग एवं बहिरंग क्षोभ से रहित आत्मा की पूर्ण शान्त दशा का नाम ही मोक्ष है।'
अन्तः शून्यं बहिशून्यं, चित्तशून्यं विकल्प मुक्त।
अन्तः पूर्ण बहिपूर्ण, शान्ति पूर्ण हि मोक्ष तत्त्व।। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है- मुक्ति का मार्ग है, तो मुक्ति है और मुक्ति है, तो आप राग-द्वेष का अभाव भी कर सकते हैं। यह सब किस अपेक्षा से है, यह समझना चाहिए। सांसारिक पदार्थों की अपेक्षा जो किसी से राग नहीं है, द्वेष नहीं है, यही मुक्ति है। यह जीवन आज बन जाये। सिद्ध परमेष्ठी के समान आप भी बन सकते हैं, उम्मीदवार अवश्य हैं, कुछ समय के अन्दर नम्बर आयेगा, यह सौभाग्य हमें भी प्राप्त हो सकता है। अभी आप लोगों की रुचि (धारणा) संसार में ही लग रही है, किन्तु यह ध्यान रखना कि अन्त में
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