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मोक्ष तत्व
पंडित श्री दौलतराम जी ने मोक्ष तत्त्व का वर्णन करते हुये लिखा है
सकल कर्म तें रहित अवस्था, सो शिव थिर सुखकारी। इह विध जो सरधा तत्त्वन की, सो समकित व्यवहारी।।
समस्त कर्मों से रहित जीव की शुद्ध अवस्था को मोक्ष कहते हैं। एक बार मोक्ष प्राप्त हो जाने के बाद जीव सदा शुद्ध अवस्था में ही रहता है। उस अवस्था में जीव अपनी परम पवित्र, परम शुद्ध आत्मा में लीन रहता है। मोक्ष प्राप्त होने पर जीव चरमशरीर से किंचित् न्यून आकार धारण किये सिद्धशिला पर जाकर शाश्वत विराजता है। उनकी आत्मा में लोकालोक के तीनकाल संबंधी समस्त पदार्थ युगपत् झकलते हैं।
'तत्त्वार्थ सत्र' जी में आचार्य उमास्वामी महाराज ने लिखा है
बन्धहेत्वभाव निर्जराभ्यां कृत्स्नकर्म विप्रमोक्षो मोक्षः । 2 ।।
बन्ध के कारणों (मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग) का अभाव हो जाने से नये कर्मों का बन्ध होना रुक जाता है और तप आदि से पूर्व बन्धे हुये कर्मों की निर्जरा हो जाती है। अतः आत्मा सर्वकर्म बन्धनों से छूट जाता है। इसी का नाम मोक्ष है। 'ज्ञानार्णव' ग्रंथ में आचार्य शुभचन्द महाराज ने लिखा है
निःशेष कर्म संबंध परिविध्वंस लक्षणः। जन्मनः प्रतिपक्षे यहः सः मोक्षः परिकीर्तितः ।।6 || जो प्रकृति, प्रदेश, स्थिति तथा अनुभाग रूप समस्त कर्मों के संबंध से सर्वथा नाश रूप लक्षण वाला तथा संसार का प्रतिपक्षी है, वही मोक्ष है। यह
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