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खुलती है, वह तुरन्त मंदिर आता है। मंदिर खोलता है तो देखता क्या है कि, गुप्तांग से रुधिर बह रहा है, महाराज निश्चल ध्यान में मग्न हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि महासमता के धारी मुनिराज आचार्य शान्तिसागर महाराज सामायिक से च्युत नहीं हुए, जो यह सिद्ध करता है कि आज के इस आधुनिक काल में भी वीतरागी दिगम्बर संत, समता के धारी मुनिराज पाये जाते हैं, जो क्षुधादि 22 परीषहों को समतापूर्वक जीतते हैं।
नग्न रहना भी एक परीषह है, जिसे साधारण मनुष्य सहन नहीं कर सकता। नग्न रहना सरल नहीं हैं। यह बाईस परीषहों में विशेष परीषह माना जाता है। कहा भी गया है कि -
अन्तर विषय-वासना बरतै, बाहर लोक-लाज भय भारी। यातें परम दिगम्बर मुद्रा, धर नहिं सकै दीन संसारी।।
ऐसी दुर्द्धर नग्न परीषह जीतें, साधु शीलव्रत धारी। निर्विकार बालकवत् निर्भय, तिनके चरणों धोक हमारी।। ऐसे शीलव्रत को धारण करने वाले मुनिराज ही दिगम्बर होते हैं। ऐसे शीलवान मुनि का व्यक्तित्त्व चमत्कारपूर्ण हो जाया करता है। ऐसे चमत्कारिक मुनि वर्तमान युग में आचार्य शान्तिसागर महराज (छाणी) हुए हैं, इनके जीवन से संम्बंधित एक चमत्कारपूर्ण घटना निम्न दृष्टांत में दृष्टव्य है – मध्यप्रदेश में बड़वानी के निकट आचार्य शान्तिसागर महराज का मंगल विहार हो रहा था। वहाँ पर कुछ विरोधी तत्त्वों ने दिगम्बर मुनिराज का विरोध किया। परिणामस्वरूप विहार को रोक दिया गया। ऐसी परिस्थितियों में आचार्यश्री सड़क पर ही पद्मासन लगाकर ध्यानमग्न हो गये। कुछ अनुयाइयों ने आचार्यश्री को घेरे में ले रखा था, किन्तु विरोधियों की अपेक्षा अनुयायी अपर्याप्त थे।
असामाजिक तत्त्व अब एक नई चाल चलते हुए एक ट्रक को भीड़ में भेजते हैं, और इनका नेता आदेश देता है कि - ये ऐसे नहीं मानेंगे, ट्रक को मुनिराज पर चढ़ा दिया जावे। ट्रक आता है तेजी से, मुनिराज की ओर बढ़ता है, किन्तु यह देख सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि जैसे ही ट्रक मुनिराज के निकट आया तो ट्रक का पहिया निकल जाता है और ट्रक पलट जाता है और इस
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