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लिख दिया। उस पर्चे की औषधि लेने जब वह कम्पाउण्डर के पास गया तो उसने नुस्खे को देखकर कह दिया कि तेरे रोग की औषधि मेरे पास नहीं है। वह निराश होकर चला गया।
वर्षा के दिनों एक दिन वह कोढ़ी नगर के बाहर जा रहा था। उसने देखा कि काले सांप ने मिट्टी के टूटे हुए एक ठीकरे में बरसात के भरे हुए पानी को पिया है। पानी पीकर सांप जब चला गया, तब उसने देखा कि ठीकरे में बचा हुआ पानी सर्प के विष से हरा हो गया है। कोढ़ी ने विचार किया कि यदि इस विषैले पानी को मैं पी जाऊँ तो आराम से मेरी मृत्यु हो जायेगी और इस कोढ़ की भयानक वेदना से मुझे सदा के लिये छुटकारा मिल जायेगा। ऐसा विचार करके मृत्यु का आलिंगन करने के विचार से उसने वह जहरीला पानी पी लिया। ___पानी पीकर वह उस घड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था जबकि सांप का विष उसको अचेत करके मृत्यु की सुखमयी गोद में बिठा दे, परन्तु हुआ इससे बिलकुल विपरीत। उस विषमय पानी को पीने के थोड़े समय पीछे ही उसका कोढ़ सूखने लगा और एक दिन में ही उसका सारा कोढ़ अच्छा हो गया। वह बड़ा प्रसन्न हुआ और उस वैद्य के पास पहुँचा कि मेरे जिस कोढ़ को आपने असाध्य बतलाया था, वह बिलकुल अच्छा हो गया। तब वैद्य ने उसके लिये लिखा हुआ अपना नुस्खा निकलवाकर उसे दिखाया, उस नुस्खे में वही सांप का पिया हुआ अवशिष्ट पुराने मिट्टी के बर्तन में भरा हुआ जल लिखा था।
यह भाग्य का ही चमत्कार है।
एक मनुष्य नपुंसक था, धोखे से उसका विवाह भी हो गया था। विवाह हो जाने पर अपनी नपुंसकता के कारण वह स्वयं दुःखी था और उसकी सती स्त्री भी महादुःखी थी। एक दिन वह बाजार से होकर जा रहा था, कि अपनी दुकान पर बैठे हुए एक अनुभवी वैद्य ने उसके शरीर के लक्षण देखकर दूसरे मनुष्य से कहा कि देखो यह नामर्द (नपुंसक) है।
वैद्य की बात उस नपुंसक के कान में पड़ गई, इससे वह बहुत लज्जित हुआ कि मेरी गुप्त बात दूसरे लोगों को भी मालूम हो गई है। उसने आत्महत्या करने के लिए घर जाकर विष मंगाकर खा लिया। विष खाते ही उसके शरीर में
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