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________________ महात्मा जी ने आशीर्वाद दे दिया। घर जाने पर उसने अपनी स्त्री से कहा कि आज सब काम बन गया है। महात्मा जी ने आशीर्वाद दे दिया कि तेरे लड़का हो जायेगा। अतः अब कोई पाप क्यों किया जाये? हम दोनों ब्रह्मचर्य से रहें। स्त्री ने पति की बात माल ली, पर ब्रह्मचारी के सन्तान कहाँ? वर्षों पर वर्ष व्यतीत हो गये, परन्तु सन्तान नहीं हुई। स्त्री ने कहा कि महात्मा जी ने तुम्हें ६ गोखा दिया है। वह व्यक्ति महात्मा जी के पास पहुंचा और बोला- दुनियाँ झूठ बोले सो तो ठीक है, पर आप भी झूठ बोलने लगे। आपको आशीर्वाद दिये 12 वर्ष हो गये, पर आज तक लड़का नहीं हुआ। ठगने के लिये मैं ही मिला। महात्मा जी ने कहा- तुमने लड़का पाने के लिए क्या किया? वह बोला- हम लोग तो आपके आशीर्वाद का भरोसा कर ब्रह्मचर्य से रहे। महात्मा जी ने हँसकर कहा- भाई! मैंने आशीर्वाद दिया था, सो सच दिया था, परन्तु ब्रह्मचारी के सन्तान कैसे होगी? तू ही बता । ऐसा ही हाल हम लोगों का है। सच्चा सुख तो मोक्ष में है, जो मोक्षमार्ग पर चलने से ही प्राप्त होगा। हम लोग मोक्ष तो चाहते हैं, पर मोक्षमार्ग पर चलना नहीं चाहते। बिना रत्नत्रय को धारण किये माक्ष कैसे प्राप्त होगा? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र जीव के गुणों में सर्वोपरि हैं, इसलिये इन्हें रत्नत्रय कहते हैं। श्रेष्ठ का वाचक 'रत्न' शब्द है। श्रेष्ठ पुरुष को पुरुषरत्न, श्रेष्ठ गज को गजरत्न आदि कहते हैं। जीव के सम्यग्दर्शनादि तीन गुणों के द्वारा आत्मा का भवभ्रमण छूट जाता है और जीव अविनाशी, अनन्तसुखस्वरूपी मोक्ष को प्राप्त करता है। रत्नत्रय वह अमूल्य निधि है जिसकी तुलना संसार की समस्त सम्पदा से भी नहीं की जा सकती। रत्नत्रय को धारण कर लेने पर मोह, राग-द्वेष का विनाश हो जाता है और आत्मा में अतीन्द्रिय सहज-सुख का संचार होता है। ‘ज्ञानार्णव' ग्रंथ में आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने लिखा है तैरेव हि विशीर्यन्ते विचित्राणि बलीन्यपि। दृग्बोधसंयमैः कर्मनिगडानि शरीरिणाम् ।। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से ही जीवों की नाना प्रकार 02 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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