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बेचारी को पतिसुख प्राप्त नहीं हुआ । सौभाग्य से जब एक दिन उसके सुयोग्य, पराक्रमी पति पवनंजयकुमार को सुमति जागी और रात्रि के अंधकार में ही चोर की तरह गुप्त रूप से युद्धक्षेत्र के मार्गस्थ पड़ाव मानसरोवर से अपनी चिरवियोगिनी प्रिया अंजना से मिलने आया, कुछ घण्टों अंजना को पतिसंयोग का सुख भी मिला, तो अपने पति के प्रसंग से रहे हुए गर्भ को उसकी कर्कशा सास ने अन्य किसी पुरुष के साथ व्यभिचार का फल समझा और उस सुकोमल निरपराधिनी राजकुमारी पुत्रवधु को तिरस्कार के साथ घर से बाहर निकाल दिया ।
ससुराल की ठुकराई अंजना अपने पीहर गई, किन्तु दुर्दैव ने उसका पीछा वहाँ भी न छोड़ा। उसकी दयनीय दशा पर स्नेहमयी सगी माता तथा पिता को दया न आई और उन्होंने भी निर्दय रुष्टता प्रगट करते हुए उस सुपुत्री को कुलकलंकनी समझकर आश्रय न दिया । तब बेचारी सर्वथा अनाथिनी होकर निर्जन वन में चली गई । जनशून्य वन में शरीर की छाया की तरह उसकी बालसखी बसन्तमाला ने उसका साथ दिया। अंजना भी ये पर्वत- जैसे दीर्घ, भारी, कठोर दुःख अपने गर्भ की रक्षा के लिये सहती चली गई ।
सौभाग्य से उसे वहाँ अवधिज्ञानी मुनिराज मिल गये । उन्होंने उसे सान्त्वना दी कि पुत्री ! तेरे दुर्दैव की अन्धकारमयी रात्रि समाप्त होने वाली है, सौभाग्य का प्रभात शीघ्र होगा। महान पराक्रमी, महान भाग्यशाली पुत्र का मुख तूं शीघ्र देखेगी और तेरा पति भी तुझको मिलेगा । धैर्य रख णमोकार मंत्र को जपती रह । निर्जन पर्वत की गुफा में हनुमान का जन्म हुआ ।
रावण के अजेयगढ़ लंका को तोड़ने वाले वीर, भाग्यशाली राजपुत्र हनुमान का जन्म उस निर्जन गुफा में हुआ जहाँ न उसका कुछ स्वागत-सत्कार हुआ, न मांगलिक गीत गाये, न कुछ उत्सव हुआ । प्रसविनी माता ने ही अधीरता और मानसिक पीड़ा के आँसू बहा कर शोक भरे हर्ष से अपने होनहार पुत्र का मुख चूमा, जिसने कि गर्भ में आते ही अपनी उस माता को हृदयदाहिनी विकट विपत्तियों में डाल दिया था। इसी को तो नीतिकार कवि ने कहा है -
1972