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संदेशा लेकर जाऊँगा और वहाँ सुनाऊँगा । तोते ने कहा- भारतीय जंगल में चले जाना और वृक्षों पर बैठे हुये मेरे साथियों से कहना, मैं यहाँ पर कारागृह में हूँ । मैं यहाँ पर परतंत्र हूँ। मेरे पास पंख हैं, लेकिन मेरे पास उनका उपयोग नहीं है, मेरे पंख बेकार हुये जा रहे हैं । यद्यपि पिंजड़ा सोने का है, पर सारा सुख पराधीन है। पराधीन सुख भी दुःख ही होता है । तुम लोग अपनी स्वतंत्रता किसी भी कीमत पर मत बेचना ।' सौदागर ने समाचार सुना और भारत के लिये रवाना हो गया। भारत आते ही उसने पहला काम संदेशा पहुँचाने का किया । भारतीय जंगल में गया। एक वृक्ष पर बहुत से तोते बैठे हुये थे । वह वृक्ष के नीचे गया और उसने कहा कि मैं परदेश से आया हूँ तथा तुम्हारे बंदी जातिभाई का एक खास जरूरी संदेशा लाया हूँ। वृक्ष के सभी तोते सावधान हो गये । उसने संदेशा सुनाया। संदेशा सुनते ही सभी तोते बैचेन हुए, पंख फड़फड़ाये और वृक्ष के नीचे गिर गये, मूर्च्छित हो गये। सौदागर को लगा कि यह बड़ा अशुभ समाचार था, मैंने व्यर्थ सुनाया । वह उदास होकर लौट आया। उसके मन में एक ही ख्याल था कि मेरे कारण अनेक तोते मरण को प्राप्त हो गये। वह अपने देश लौटा और उसने तोतों के मूर्च्छित होने का समाचार अपने तोते को जाकर सुनाया कि तुम्हारा संदेशा सुनते ही अनेक तोतों ने पंख फड़फड़ाये और मूर्च्छित हो गये । तुम्हें ऐसा अशुभ समाचार नहीं पहुँचाना था। उसके तोते ने अपने भाइयों के मूर्च्छित होने का जैसे ही समाचार सुना, वह भी तड़फा, पंख फड़फड़ाये और पिंजड़े में ही मूर्च्छित हो गिर पड़ा। सौदागर काफी दुःखित हुआ, उसे काफी अफसोस हुआ कि यहाँ का संदेशा वहाँ सुनाया, वहाँ के तोते मूर्च्छित हो गये थे और वहाँ का समाचार यहाँ पर सुनाया तो मेरा तोता मर गया। उसने पिंजड़ा खोला, तोते को बाहर निकाला और सोच में डूब गया । तोते ने पंख फड़फड़ाये और उड़ गया, सौदागर देखता रह गया । बंधन में, परा गीता में कभी भी सुख नहीं होता । प्रत्येक संसारी आत्मा बंधन में बंधी है और मुक्त होना चाहती है। जो बंधन में होगा, वही तो मुक्त हो सकेगा। सोचना होगा कि ये बंधन किसने डाले हैं, कब डाले हैं, किन कारणों से डाले हैं? आत्मा कर्मबंधन में कब से पड़ी है? अनादिकाल से आत्मा कर्म बंधन में पड़ी है और ये U 195 S