________________
जिंदगी में कभी भी तेल और गुड़ मत खाना। तुमने गारंटी से गुड़ और तेल खाया है। बिना उसके यह तकलीफ हो ही नहीं सकती। तब उसने हाथ जोड़कर कहा-साहब! न मैंने गुड़ खाया, न मैंने तेल खाया, मैंने तो गुलगुले खाये थे। गुलगुले आटे में गुड़ डालकर तेल में पकाये जाते हैं।
वैद्य जी ने उसे दबा दी और कहा कि अब भविष्य में गुड़ नहीं गुलगुले भी नहीं, किसी भी रूप में ये गुड़ और तेल तेरे खाने में नहीं आना चाहिये।
ऐसे ही यहाँ पर आचार्य कह रहे हैं कि हमने तेरी तकलीफ बताई, यह भी बताया कि यह तुझे क्यों हुई है। तूने अनादि से मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इन आस्रव के कारणों का सेवन किया है, इसलिये यह तकलीफ हुई है। ____बोल, तूने इनका सेवन किया है या नहीं किया है? नहीं, साहब! सिर कट जाये, लेकिन किसी भी कुदेवादिक के सामने मेरा माथा नहीं झुके । भैया! इनके बिना यह तकलीफ हो ही नहीं सकती। चार गति और चौरासी लाख योनियों का परिभ्रमण इन आस्रव के कारणों के बिना हो ही नहीं सकता है।
श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने लिखा है कि जिस प्रकार रस ले-लेकर कर्मों का आस्रव व बन्ध किया है, उसी प्रकार रस ले-लेकर इन्हें तोडने से काम चलेगा। उन्होने आस्रव को अपराध बताया है। वास्तव में मेरा सारा जीवन ही अपराधमय है। चौबीस घंटे मैं करता ही क्या हूँ अपराध के अतिरिक्त? अपराध करने वाला स्वयं मैं हूँ। मैं उससे भलीभांति परिचित हूँ। उसे बंद करने का मुझे पूरा अधिकार है और यदि मैं स्वयं अपराध न करूँ तो कोई शक्ति जबरदस्ती मुझे अपराध करने के लिये बाध्य नहीं कर सकती। कर्मों का दास बना आज का जगत अपने को कार्मण शरीर के अधीन मानता हुआ कहता है कि मुझे तो अपराध वह करा रहा है। जब तक वह रास्ता न देगा मैं क्या कर सकता हूँ? उसका उदय होगा तो मुझे अपराध करना ही पड़ेगा। मैं क्या करूँ? मैं स्वयं तो अपराध करना चाहता नहीं, पर यह मेरा पीछा छोड़ता ही नहीं। इस प्रकार अपना दोष दूसरों के गले मढ़ता है और स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का प्रत्यन
0 179_n