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द्रव्य में आसक्त होकर अपने अमूल्य जीवन को समाप्त कर देता है। वह भूल जाता है कि समय बीत रहा है और प्रतिपल हम मृत्यु के निकट पहुंच रहे हैं।
वनवास काल में पांचों पांडव द्रौपदी के साथ जंगल में भटक रहे थे। एक समय जब वे भयानक जंगल से गुजर रहे थे, द्रौपदी को बड़ी जोर से प्यास लगी। तब धर्मराज ने छोटे भाई नकुल से कहा कि तुम जाओ और कहीं से भी तूणीर पात्र में पानी ले आओ। नकुल तुरन्त ही बड़े भाई की आज्ञा मानकर चला। इधर-उधर तलाशने पर उसे एक सुन्दर सरोवर दिखाई दिया जिसका पानी अत्यंत निर्मल था। यह देख नकुल का मन प्रसन्नता से भर गया। वह ज्यों ही पानी पीने को उद्यत हुआ त्यों ही उसे आकाशवाणी सुनाई दी-हे माद्रीपुत्र नकुल! पहले मेरे प्रश्न का जवाब दो, फिर पानी पीने का साहस करना। तब नकुल ने कहा-कहिए-प्रश्न क्या है? तब यक्ष ने कहा कि मेरा प्रश्न है-को मोदते? अर्थात् प्रसन्न कौन है? प्रश्न सुनकर नकुल ने उसकी उपेक्षा की और पानी पीने ज्यों ही झका कि वह मर्छित होकर गिर पड़ा।
उधर बहुत देर हो जाने पर भी नकुल को न आते देखकर युधिष्ठिर ने सहदेव को नकुल की खोज करने के लिए भेजा। तब वह खोजने उसी सरोवर के पास पहुँचा। भाई को मूर्च्छित देखकर घबराया। आसपास देखा, पर उसे कुछ भी समझ नहीं आया। इतने में उसे आकाशवाणी सुनाई दी-हे माद्री पुत्र सहदेव! पहले तुम मेरे प्रश्न का जवाब दो, फिर पानी पीने की इच्छा करना। तुम्हारे भाई ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो वह बेहोश होकर गिर पड़ा है। तब यक्ष ने प्रश्न पूछा-किमाश्चर्यम् अर्थात् आश्चर्य क्या है? परन्तु सहदेव ने भी उपेक्षा करके जल पीना चाहा तो उसका भी वही हाल हुआ। तब भीम आया और उससे भी कहा गया कि प्रश्न का जवाब पहले दो फिर पानी पीना। यक्ष ने तीसरा प्रश्न पूछा-का वार्ता अर्थात् समाचार क्या है? उसने भी उत्तर नहीं दिया तो उसकी भी वही गति हुई। अर्जुन को युधिष्ठिर ने भेजा और वह भी जब सरोवर पर पहुँचा तो आकाशवाणी हुई, उससे यक्ष ने पूछा-का पथः अर्थात् कौन –से पथ का अनुसरण करें? अर्जुन ने भी उत्तर नहीं दिया तो वह भी मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। चारों भाई मूर्छित होकर सरोवर के किनारे पड़े हुए
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