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________________ ले जाकर सेठ जी के पलंग के नीचे रख दिया। सेठ जी व्यापार से देर से आये और पलंग पर सो गये। सुबह उठे और अंधेरे में पानी का लोटा समझकर रंग के लोटे को लेकर शौच करने चले गये। शौच के बाद जब उठने लगे तो हाथों पर लाल रंग लगा देखकर खून समझ लिया और चिल्लाने लगे तथा असहाय होकर गिर पड़े। चार आदमियों ने सेठ जी को उठाकर चारपाई पर लिटाया, वैद्य बुला लिये। इतने में कारीगरों ने आकर लड़की से रंग मांगा, तब वहाँ वह लोटा नहीं मिला। लड़की ने कहा-पिताजी आपने रंग का लोटा इस्तेमाल कर लिया। आपको कुछ नहीं हआ है। वह खून नहीं था, रंग था। इतना सुनते ही सेठ जी उठकर खड़े हो गये और बोले-बेटी ! जल्दी मेरा टिफिन लाकर दो मुझे व्यापार पर जाना है, देर हो रही है। बस, यही दशा इस मोही संसारी प्राणी की हो रही है। यह मिथ्या भ्रान्ति में पड़कर व्यर्थ में दुःखी हो रहा है। अतः यदि सुखी होना चाहते हो तो बहिरात्मपने को छोड़कर अन्तरात्मा बनकर सदा परमात्मा का ध्यान करो। पंडित दौलतराम जी ने लिखा है कि बहिरात्मपना अत्यन्त हेय है, क्योंकि जीव अनादिकाल से जन्म, मरण आदि के दुःख बहिरात्मपने के कारण ही पाते आ रहे हैं। शरीर एवं विकारी भावों को अपना स्वरूप समझकर आज तक वचनातीत असहनीय दुःख उठाते आ रहे हैं। अतः बहिरात्मपने को सदैव के लिये छोड़कर पर की ओर से निज दृष्टि मोड़कर अन्तरात्मा बनो और अत्यन्त सुखकारी परमात्मा का अहर्निश ध्यान करते हुये निमग्न रहो, जिससे निजानन्द की उपलब्धि निज में होगी। जो भी अन्तरात्मा बनकर परमात्मा के गुणों का स्मरण करता है, वह भव-समुद्र का किनारा निरख लेता है और परमानन्दमय अमृत का पान करता हुआ एक दिन मोक्ष के अनन्तसुख को प्राप्त कर लेता है। 0 156 m
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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