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आमंत्रण स्वीकार नहीं करते। हम भोजन का पहला ग्रास तोड़ ही रहे थे कि सैनिकों ने हमारे ऊपर बड़े खूँखार और शिकारी कुत्ते छोड़ दिये, इससे ज्यादा और हमारा अपमान क्या हो सकता है?
सम्राट ने कहा— मैं बहुत दुःखी हूँ कि मेरे सौ पुत्रों में से एक भी ऐसा न निकला जिसे मैं अपना राज्यभार सौंपकर आत्मकल्याण करने हेतु चला जाऊँ । एक भी ऐसा पुत्र नहीं है, जो मेरे नाम को रोशन कर सके । सम्राट की आँखों में आँसू भर आये। सारे राजकुमार सिर झुकाकर जाने लगे, लेकिन सबसे छोटा राजकुमार पिता के पास गया और पिता के आँसू पोंछकर कहने लगा- पिताजी ! निराश नहीं होइये। आपके सौ बेटों में मैं ही एक ऐसा बेटा हूँ जिसने आज भरपेट भोजन किया है। जितने आनन्द और उत्साह से आज मैंने खाया है, ऐसा आनन्द मुझे आज तक नहीं मिला ।
पिता ने पूछा- बेटे! तूने इतने कुत्तों के बीच भरपेट भोजन कैसे किया? उस बेटे ने कहा-पिताजी ! बात बहुत छोटी है, लेकिन बहुत बड़ी भी है । जैसे ही मेरे ऊपर सौ कुत्ते झपटे, मैं उन्हें एक स्थान पर टुकड़े डालता रहा । कुत्ते अपना भोजन करते रहे और मैं अपना भोजन करता रहा। जो दूसरों को खिलाता है, वो कभी भूखा नहीं रहता और जो दूसरों को सताता है, वह कभी सुखी नहीं रह सकता ।
सम्राट प्रसन्न हो गया। उसे लगा कि यह मेरा बेटा धर्मात्मा है, यह प्रजा का पालन अच्छे प्रकार से कर सकता है। उस छोटे बेटे का नाम था श्रेणिक, जो मगध की राजगद्दी पर बैठा ।
इसी प्रकार जो सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा हैं वे ही मोक्ष महल में प्रवेश करने के अधिकारी हैं। वे जानते हैं- मैं एकाकी, अनादि, अविकारी, निर्द्वन्द्व, निरामय, निष्कलंक, वीतराग, शुद्ध चैतन्यमय, अविनाशी, परम उत्कृष्ट, निराकार, अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य आदि गुणों से युक्त आत्मा हूँ । सम्यग्दर्शन की महिमा वचन के अगोचर है जिसके कारण यह आत्मा, अशुद्ध होता हुआ भी, शुद्ध ज्ञानज्योति को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से देखता है और पुनः - पुनः देखकर अपने आत्मबल को बढ़ाता है।
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