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आखिरी वेश है। अब तो हम कर्मों से लड़ेंगे। कुटुम्बवालों ने उन्हें बहुत रोका, मुनिव्रत के भय दिखाये, पर वे नहीं रुके। आखिर मथुरामल ने भी क्षुल्लक के व्रत ले लिये। जो निर्मोही होता है, वह घर में जल से भिन्न कमल की भाँति रहता है और सुख-दुःख सभी परिस्थितियों में समताभाव रखता है। ___ एक बार देवों में चर्चा हुई कि मध्यलोक में एक राजा बिल्कुल निर्मोही है, उसका कुटुम्ब भी निर्मोही है। एक देव परीक्षा लेने के लिए आया और उस देव ने योगी का रूप धारण कर लिया। राजा का लड़का उस समय वन में घूमने गया था, उसी समय देव उस कुँवर का मृतक शरीर लेकर महल में आया। दरवाजे पर उसकी दासी मिली और उससे कहा कि राजकुँवर को शेर ने खा लिया है, मैं तुम्हें खबर करने आया हूँ। ___ तब दासी कहती है कि इतने क्यों घबरा रहे हो? हे योगी! तूने कपड़े ही रंगे हैं, मर्म नहीं जानते, योगी निर्मोही होते हैं। तब देव ने सोचा कि यह तो दासी है. यह तो नौकरी करती है ये भला क्यों रोयेगी? वह माता के पास जाकर बोला-"माता तेरे बेटे को शेर ने खा लिया है।” माता कहती है- “हे योगी! तुम किसलिये चिंतित हो रहे हो? इस संसार में तो जन्म-मरण होते ही रहते हैं। तब देव ने सोचा कि यह माता बड़ी कठोर है, गम नहीं खाती। तब वह राजकुमार की पत्नी के पास गया और वहाँ जाकर कुँवर के मुर्दे का रूप पत्नी को दिखाता है और कहता है कि तेरे पति को सिंह ने खा लिया है। तब वह कहती है-"हे योगी! तेरी बुद्धि कहाँ चली गई है? तेरे हृदय में मिथ्यात्व का अंधेरा छा गया है। इस संसार में कोई किसी का नहीं है, यह जगत झूठा है, योगी! तूने इतनी उम्र वैसे ही गँवा दी। देव शर्मिन्दा होकर राजसभा में आया और बोला-राजा साहब! तुम्हारा एक ही लड़का है, उसे सिंह ने खा लिया है। राजा योगी से कहता है-'तुम इतना क्यों घबरा रहे हो? जो होनी थी, हो गयी। कर्मों की माया है। जो जन्मा है, वह नियम से मरेगा भी।' तब देव ने अपना असली रूप बनाया और कहने लगा "हे राजन्! आप धन्य हैं, इन्द्रसभा में आपकी जैसी प्रशंसा सुनी थी, उससे भी अधिक पायी। वह देव राजा को नमस्कार कर चला गया। आचार्य समझा रहे हैं-अरे! जिन बाह्य पदार्थों के पीछे इतना हैरान हो रहे
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