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मात्र स्वांग समझ लेगा, तब फिर न तो उसके कारण तू दुःखी-सुखी होगा और न ही तुझको नये-नये स्वांग भरने पड़ेंगे। इस प्रकार अंत में जब पूर्वसंचित कर्मों के द्वारा रचा हुआ तेरा अंतिम स्वांग भी समाप्त हो जायेगा, तब फिर तू इन कर्मजनित स्वांगों से सर्ववाधारहित-जैसा तू वस्तुतः है, वैसा ही रह जायेगा।
___ संसारी जीव की कर्मजनित, परिवर्तनशील और नाशवान् अवस्थाएं स्वप्न की भांति ही अर्थहीन और क्षणस्थायी हैं। कोई व्यक्ति जब स्वप्न देखता रहता है, तभी तक स्वप्न उसके लिए वास्तविक लगता है। परन्तु जैसे ही वह जागता है, वैसे ही स्वप्न वास्तविकता से विहीन स्वप्न मात्र रह जाता है। स्वप्न में उसकी जो भी अवस्थाएँ हुई थीं, वे सुख-दुःख का कारण नहीं रह जातीं। इसी प्रकार यह जीव अपने चैतन्य-स्वभाव में तो सो रहा है और संसार के कार्यों में जाग रहा है। यदि यह अपने चैतन्य-स्वभाव में जाग जाये, तो संसार के समस्त कार्य स्वप्नवत हो जाते हैं, अर्थहीन हो जाते हैं।
आचार्य समझा रहे हैं कि ये मकान-दुकान तेरे कुछ भी नहीं हैं। इनका मोह छोड़कर अपने आत्मस्वरूप को पहचानकर अन्तरात्मा बनो। इनके मोह के कारण तुझे संसार में रुलना पड़ेगा। संसारी प्राणी सपनों की दुनियाँ में मस्त हो रहा है। यह संसार स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है। ‘जगत मिथ्या है, इसका क्या अर्थ है? केवल इतना-सा अर्थ है कि जगत स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है। स्वप्न दो प्रकार के होते हैं :
1. बन्द आँख का सपना 2. खुली आँख का सपना ।
व्यक्ति रात में सोता है, सपनों में खो जाता है, यह बन्द आँख का सपना है, जो व्यक्ति कभी-कभी देखता है। यह सपना घड़ी भर का, घंटे भर का होता है, ज्यादा हुआ तो रात भर का होता है। लेकिन खुली आँख का सपना जीवन भर का होता है। अभी जो आप देख रहे हैं, ये मकान, दुकान, बीबी-बच्चे, नौकर ये सब क्या है? खुली आँख का सपना है। जब तक आपकी आँखें खुली हैं, तब तक सही-सलामत है। आँख लगी, नेत्र मुँदे, कि सब बिखर जायेगा। दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा। खुली आँख का सपना देखते-देखते पूरी
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