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लक्ष्मीकुमार ने कहा-उसे किस प्रकार देखें ? जिनकुमार ने कहा-आँखें बन्द करके अन्दर देखो। लक्ष्मीकुमार बोला-अन्दर तो अन्धेरा दिखता है ।
जिनकुमार ने कहा – “भाई! उस अन्धकार को भी जो जानने वाला है, वही चैतन्य आत्मा है, वही असली चैतन्य हीरा है। तुम्हारा हीरा खोया नहीं है, वह तेरे में ही है। अनन्त गुणों के तेज से तुम्हारा चैतन्यहीरा चमक रहा है।"
हमारा चैतन्य हीरा हमारे में ही है, यह जानकर लक्ष्मीकुमार बड़ा आनन्दित हुआ और खुशी-खुशी घर जाकर पिताजी से कहा-"पिताजी! मुझे मेरे असली हीरे का पता चल गया। __जिनकुमार के पास से तुझे हीरा मिला, इसलिये अवश्य ही उसकी माता ने वह चुराया होगा, ऐसा विचार कर सेठ ने क्रोधित होकर डाँटने– फटकारने के लिए जिनकुमार की माँ हीराबाई को बुलवाया।
परन्तु यह क्या? वे आवें, इसके पहले ही लक्ष्मीकुमार की माँ हाथ में जगमगाते पत्थर को लेकर आ गईं और कहने लगीं-"यह अंगूठी का हीरा मिल गया, इसलिये क्रोध न करो। अँगूठी में से निकल गया होगा। अभी घर की सफाई करते समय मिला है।"
घर में ही हीरा मिलने से सभी खुश हुये। उसी समय हीराबाई वहाँ आ पहुँची, तब सेठ जी दयनीय होकर बोले -
हे माँ! मुझे माफ कर दो। हमारा हीरा घर में ही था, परन्तु भूल से हमने तुम्हारे ऊपर आरोप लगाया।
हीराबाई ने गम्भीरता से कहा-"भाई! आज खुशी का दिन है, इसलिए दुःख छोड़ो और जड़ हीरे का मोह छोड़कर अपने ही अन्दर विराजमान चैतन्यस्वरूपी आत्मा को पहचानने का प्रयास करो। चैतन्य का महान सुख प्रत्येक आत्मा में भरा है, जिसे न जानने के कारण ही सभी जीव परपदार्थों में सुख ढूँढ़ते हैं और दुःखी होते हैं।"
आचार्य समझा रहे हैं कि शरीर की गिनती तो कई बार हो चुकी, जो परपदार्थ हैं उनकी गिनती भी कई बार हो चुकी, लेकिन अपनी गिनती करना
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