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________________ मट दा!" माताजी ने मिठाई लेकर दोनों बालकों के मुँह में खिलाई और पूछा- बेटा! तुम्हारे पिताजी ने आज तुम्हें क्या भेंट दी? ___ लक्ष्मीकुमार ने कहा-"माँ! पिताजी ने मुझे एक सुन्दर अंगूठी दी है। उसमें कीमती हीरा जड़ा है।” तब उसने जिनकुमार से पूछा- "तुम्हारी माँ ने तुम्हें क्या भेंट दीं?" जिनकुमार ने कहा-"भाई! हमारे पास ऐसे हीरे-जवाहरात तो नहीं हैं, परन्तु आज हमारी माता ने मुझे मेरा चैतन्य हीरा बताया है।" इस प्रकार दोनों घंटों बातचीत करते रहे। जब रात्रि होने लगी तब लक्ष्मीकुमार अपने घर चला गया। जिनकुमार के घर में कोई रात्रिभोजन तो करता नहीं था, इसलिए वह तो रात्रि में माताजी के पास धर्मकथा सुनने बैठ गया। यहाँ लक्ष्मीकुमार के घर भोजन की तैयारी चल रही थी। बहुत मेहमान उपस्थित थे। भोजन के पहले जब लक्ष्मीकुमार हाथ धो रहा था तभी उसके पिताजी की नजर उसके हाथ पर पड़ी और हाथ की अंगूठी में हीरा न देखकर उन्होंने तुरन्त पूछा-बेटा! तुम्हारी अंगूठी में से हीरा कहाँ गया? तब लक्ष्मीकुमार ने अपनी अंगूठी की तरफ देखा और हीरा न देखकर वह डर गया। अरे! अंगूठी में तो हीरा नहीं है। बापू हीरा कहाँ गया, इसका मुझे ख्याल नहीं है। उसकी बात सुनकर पिता जी बहुत क्रोधित हुए और जिस पुत्र के जन्मदिन का आनन्द मना रहे थे, उसी पर क्रोध करने लगे। वह डर गया और रोने लगा। अरे! धिक्कार है ऐसे संसार को, जहाँ हर्ष-शोक की छाया बदलती रहती है। हीरे को खोजने की पूछताछ चालू हुई। लक्ष्मीकुमार ने बताया कि वह तो आज अपने मित्र जिनकुमार के घर के अलावा दूसरी जगह गया ही नहीं था। ___लक्ष्मीकुमार के पिता ने सोचा जिनकुमार बहुत गरीब है, इसलिए उसकी माता ने अवश्य ही लक्ष्मीकुमार की अंगूठी में से हीरा निकाल लिया होगा और अपने पुत्र जिनकुमार को दे दिया होगा। ऐसा विचार कर उसने अपने पुत्र से कहा-जाओ, तुम्हारे मित्र जिनकुमार को बुलाकर लाओ। 0 129_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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