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________________ मैं इसे ले जाने में असमर्थ हूँ । तब नानकजी ने कहा– एक सुई मृत्यु के बाद ले जाने में असमर्थ हो, तो फिर तुम्हारे पास क्या है जो मृत्यु के बाद उस पार ले जाया जा सके? और ऐसा तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, जिससे अपने आपको धनवान समझो। सम्पत्तिशाली वे ही हैं, जिनके पास मृत्यु के उस पार ले जाने वाली सम्पदा है, वे ही धनी हैं। वह सम्पदा है धर्म। अगर धनी बनना चाहते हो तो धर्म को जीवन में धारण करो। सर्व प्रकार के प्रयत्न से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर बहिरात्मपने को छोड़कर अन्तरात्मा बनो। यदि सुखी होना चाहते हो तो परिग्रह से आसक्ति घटाकर जीवन में धर्म को धारण करो । जिस प्रकार रस ले-लेकर इन बाह्य पदार्थों से मोह बढ़ाया है, उसी प्रकार रस ले-लेकर इनसे मोह करना छोड़ दो। ये बाह्य परिग्रह तो दुःख के ही कारण हैं। जैसे-जैसे परिग्रह से परिणाम भिन्न होने लगते हैं, परिग्रह में आसक्ति कम होने लगती है, वैसे-वैसे ही दुःख भी कम होने लगता है। जो निर्मोही होते हैं, वे ही वास्तव में सुखी हैं और भविष्य में अनन्तसुख के धारी बनेंगे । एक बार एक नगर का राजा मर गया। मंत्रियों ने सोचा कि अब किसे राजा बनाया जाय? सभी ने मिलकर तय किया कि सुबह के समय अपना राजफाटक खुलेगा तो जो व्यक्ति फाटक पर बैठा मिलेगा उसे ही राजा बनायेंगे। सुबह फाटक खुला तो वहाँ मिले एक साधु महाराज । वे लोग उस साधु का हाथ पकड़कर ले गये और बोले कि तुम्हें राजा बनना है । साधुजी बोले कि नहीं-नहीं, मुझे नहीं बनना राजा । मंत्री बोले- तुम्हें राजा बनना ही पड़ेगा । उतारो यह लंगोटी और ये राज्याभूषण पहनो । साधु जी के मना करने पर जब वे नहीं माने तो साधु जी बोले-आप लोग हमें राजा बनाते हो तो हम राजा बन जायेंगे, पर हमसे कोई बात न पूछना, सब कामकाज आप लोग ही चलाना । हाँ-हाँ, यह तो मंत्रियों का काम है, आपसे पूछने की क्या जरूरत है? हम लोग सब काम चला लेंगे। उस साधु ने अपनी लंगोटी एक छोटे से संदूक में रख दी और राजवस्त्र पहन लिये। दो-चार वर्ष तो अच्छे से गुजर गये। एक बार U 118 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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