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के लिए हमने दिन-रात एक किये हैं, उस सम्पत्ति का जीवन में धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है।
नानक जी एक गाँव में ठहरे हुये थे। वहाँ के एक बहुत बड़े सम्पत्तिशाली व्यक्ति ने उनसे जाकर कहा कि मेरे पास अटूट सम्पदा है, मुझे उसका सदुपयोग करना है, आप कोई उचित मार्ग बतायें। मैं आप पर बहुत विश्वास करता हूँ। आप मुझे जीवन में सेवा का अवसर अवश्य ही दें, जिससे मैं समय और सम्पत्ति का सदुपयोग कर सकूँ। नानकजी ने सेठ की ओर देखा और तत्क्षण कहा "तुम तो दरिद्र दिखते हो, तुम्हारे पास सम्पत्ति कहाँ है?" सेठ ने कहा-"आप मुझे जानते नहीं हैं। यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपको अपनी सम्पत्ति का हिसाब दिखाऊँ। आपको मेरे बराबर इस क्षेत्र में कोई धनाढ्य नहीं मिलेगा। आपको गलतफहमी हो गई है या फिर मेरे सम्बन्ध में आपको किसी ने गलत बता दिया है। आप आज्ञा दें, तो मैं आपको अपनी सम्पत्ति दिखाऊँ? आप जो कहेंगे मैं उसे करके अवश्य दिखाऊँगा।
नानकजी ने उसे एक छोटी-सी सुई दी और कहा कि इसे मरने के बाद मुझे वापिस कर देना। अपनी सारी सम्पदा का प्रयोग करना और यह सुई मरने के बाद अवश्य लौटा देना। वह नानकजी की बात सुनकर हैरान हो गया, किन्तु सब लोगों के सामने उसने कुछ नहीं कहा। वह रात भर बिस्तर पर पड़ा-पड़ा सोचता रहा। शायद कोई अपूर्व रास्ता निकल जाये कि मृत्यु के उपरान्त सुई को साथ में ले जाऊँ। लेकिन कोई भी उपाय दिमाग में नहीं आया। सुबह वह अपने मित्रों से मिला, उसने पूछा-क्या कोई ऐसा रास्ता हो सकता है कि मृत्यु के बाद सुई को साथ में ले जा सकूँ? मित्रों ने कहा-यह तो बिल्कुल असंभव है। आप इस जगत की जरा-सी सम्पत्ति को समस्त शक्ति लगाकर भी मृत्यु के बाद साथ ले जाने में असमर्थ हैं। अरे! जब आप अपने शरीर को ही साथ नहीं ले जा सकते, तो फिर यह सुई मृत्यु के बाद कैसे आपके साथ चली जायेगी?
काफी सोचने विचारने के बाद सेठ नानकजी के पास पहुँच गया और नानकजी को सुई वापिस करते हुये बोला-कृपा करके मुझे क्षमा कर दो तथा इस सुई को वापिस ले लो, मेरी सारी सम्पत्ति भी ले लो, क्योंकि मृत्यु के बाद
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