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________________ करके इन जड़पदार्थों की आसक्ति को छोड़ देना चाहिए। आचार्यों ने अनेक दृष्टान्त देकर इन तत्त्वों को समझाने का प्रयास किया है। जिस प्रकार किसी मकान में कोई मनुष्य रहता है। पुरुष को समझो जीव । उस घर को समझो अजीव। उसी प्रकार इस कमरेरूपी शरीर में आत्मा जीव है और शरीर अजीव है। अब इस मनुष्य के मकान में एक घण्टी लगी है, वह उस घण्टी को बजाकर मेहमानों को बुलाता है। घण्टी बजी, मेहमान आने शुरू हो गये, एकदम आते जा रहे हैं, क्योंकि घण्टी बार-बार बजाई जा रही है। मेहमान आने से क्यों हटें, जब उनको बुलाया जा रहा है? उस मनुष्य के यहाँ तो मेहमान आ रहे हैं, लेकिन आत्मा में क्या आ रहे हैं? कर्म आ रहे हैं। राग-द्वेष तो हुए मन के द्वार, निमंत्रण वचन हुए घण्टी तथा काय हुई कमरा, इन तीनों के द्वारा ही तो मेहमान आते हैं अर्थात् आस्रव होता है। उस मनुष्य को कुछ होश आयां, अरे! ये तो जम कर बैठते जा रहे हैं- यह हुआ बन्ध तत्त्व । उसने विवेक से सोचकर मन-वचन-कायरूपी दरवाजे बन्द कर दिये, यह हुआ संवर तत्त्व । मेहमान आने बन्द हो गये। अब वह सोचता है कि बाहर से मेहमान आना बन्द हो गये, लेकिन अभी अन्दर काफी मेहमान जमे बैठे हैं। अब उसने उनको कठोर वचन बोलना शुरू कर दिया, जिससे वे मेहमान उठ-उठकर जाने लगे, यह हुई निर्जरा। जब सब मेहमान चले गये, तब उसे जहाँ जाना था वहाँ चला गया, यह हुआ मोक्ष तत्त्व । इन तत्त्वों को समझकर इन पर श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन कहलाता है। आगे इन तत्त्वों का विशेष वर्णन किया जा रहा है। 0 114
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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