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जान रहा है, देख रहा है, कि पानी बढ़ रहा है, पर जानता हुआ भी अंधा बना हुआ है।
जानबूझकर अंध बने हैं, आँखन बाँधी पाटी।
जिया! जग धोखे की है टाटी।।। संसारी प्राणी की यही दशा है। काल के गाल में जाकर भी सुरक्षा का प्रबन्ध करना चाहता है। वह व्यक्ति धन-सामग्री को लेकर जैसे ही आगे बढ़ता है, नदी के प्रवाह में बहने लगता है। देखते-देखते नदी के प्रवाह में उसका मरण हो जाता है। लेकिन मरणोपरान्त भी उसके हाथ से पोटली नहीं छूटती, जिसमें उसने सामान एकत्रित किया था। दूसरे दिन शव के साथ पोटली भी मिलती है तो सभी लोग दंग रह जाते हैं। यह तीव्र मोह का परिणाम है।
मोह को जीतना मानवता का दिव्य अनुष्ठान है। इसके सामने महान योद्धा भी अपना सिर टेक देते हैं। विश्व का कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जो मोह की चपेट में न आया हो लेकिन इसके रहस्य को जानकर इस मोह की माया को जानकर जो व्यक्ति इसके ऊपर प्रहार करता है, वह अन्तरात्मा इस संसाररूपी बाढ़ से पार हो जाता है। यह घटना उस समय लोगों ने अखबारों में पढ़ी की पत्नि और बच्चे सुरक्षित स्थान पर पहुँच गये, लेकिन मोह के कारण वह व्यक्ति बह गया।
प्रत्येक प्राणी जानता है कि मोह हमारा बहुत बड़ा शत्रु है, लेकिन मोह से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। वह दूसरे को उपदेश दे देता है लेकिन खुद सचेत नहीं होता। यही तो खूबी है इस मोह की। इस घटना को पढ़कर लगता है कि बढ़िया तो यही है कि बाढ़ आने से पूर्व वहाँ से दूर चले जायें। क्योंकि जब बाढ़ आयेगी तो प्रवाह इतना तीव्र रहेगा कि इससे हम बच नहीं सकेंगे। जानते हुये भी वहीं रहे आना, इसे आप क्या कहेंगे? यह मोह से प्रभावित होना है, यह स्वयं की असावधानी है। जान-बूझकर अन्ध बननेवाली बात है।
जो व्यक्ति मोह के बारे में जानते हुये भी उससे बचने का प्रयास नहीं करता, वह संसारसागर में डूबता है और जो व्यक्ति मोह से बचने का निरन्तर प्रयास करता है, वह पार हो जाता है। जिसने भी मोह को छोड़कर रत्नत्रय
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