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इसके लिए भगवान ने उन्हें ताड़ना दी कि जब तुम्हें न तो अतीत के बुद्धों का ज्ञान है, न अनागत बुद्धों का और न तुम वर्तमान बुद्ध के बारे में ही पूरी तरह जानते हो तो फिर मेरे बारे में ऐसा परम उदार सिंहनाद क्यों ?
इस पर सारिपुत्त ने अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया कि भले सभी बुद्धों का मुझे चेतःपरिज्ञान नहीं है, किन्तु सभी की धर्म-समानता मुझे विदित है । अतीत काल के बुद्धों ने पांचों नीवरणों को दूर कर, प्रज्ञा द्वारा चित्त के मैल हटा, चारों स्मृति - प्रस्थानों में चित्त को सु-प्रतिष्ठित कर, सात बोध्यंगों की यथार्थ से भावना कर, सर्वश्रेष्ठ सम्यक संबोधि को प्राप्त किया था । भविष्य काल में भी बुद्ध ऐसे ही सम्यक संबोधि प्राप्त करेंगे । और आप भगवान ने भी इसे इसी तरह प्राप्त किया है ।
तदनंतर सारिपुत्त ने बुद्ध की विशेषताओं का उल्लेख किया
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यह भगवान सम्यक संबुद्ध हैं, इनका धर्म अच्छी तरह आख्यात किया हुआ है, इनका श्रावक संघ सु-प्रतिपन्न है ।
* ये चार स्मृति - प्रस्थान, चार सम्यक प्रधान, चार ऋद्धिपाद, पांच इंद्रिय, पांच बल, सात बोध्यंग, आर्य अष्टांगिक मार्ग - इन कुशल धर्मों का उपदेश देते हैं ।
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ये चक्षु एवं रूप, श्रोत्र एवं शब्द, घ्राण एवं गंध, रसना एवं रस, काया एवं स्पर्श, और मन एवं धर्म- इन आयतन - प्रज्ञप्तियों का उपदेश करते हैं ।
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ये चार प्रकार से प्राणियों के गर्भ-प्रवेश के बारे में उपदेश करते हैं ।
* ये चार प्रकार की आदेशना - विधि का धर्मोपदेश करते हैं ।
* ये चार प्रकार की दर्शन- सभापत्तियों के बारे में बतलाते हैं ।
ये पुलप्रज्ञप्ति - विषयक उपदेश करते हैं ।
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ये प्रधानों के बारे में उपदेश करते हैं ।
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ये चार प्रकार की प्रतिपदा के बारे में उपदेश करते हैं ।
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