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(२.३.१३८-१३८)
३. महापरिनिब्बानसुत्तं
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साधुकं मनसिकरोथ; भासिस्सामी"ति । “एवं, भन्ते''ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं। भगवा एतदवोच
__“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न कम्मारामा भविस्सन्ति न कम्मरता न कम्मारामतमनुयुत्ता, बुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकवा, नो परिहानि ।
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न भस्सारामा भविस्सन्ति न भस्सरता न भस्सारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि |
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न निद्दारामा भविस्सन्ति न निद्दारता न निद्दारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न सङ्गणिकारामा भविस्सन्ति न सङ्गणिकरता न सङ्गणिकारामतमनुयुत्ता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकवा, नो परिहानि ।।
___“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न पापिच्छा भविस्सन्ति न पापिकानं इच्छानं वसं गता, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न पापमित्ता भविस्सन्ति न पापसहाया न पापसम्पवङ्का, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू न ओरमत्तकेन विसेसाधिगमेन अन्तरावोसानं आपज्जिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु च सत्तसु अपरिहानियेसु धम्मेसु भिक्खू सन्दिस्सिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खून पाटिकङ्खा, नो परिहानि।
१३८. “अपरेपि वो, भिक्खवे, सत्त अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि...पे०... यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू सद्धा भविस्सन्ति...पे०... हिरिमना भविस्सन्ति... ओत्तप्पी
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