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दीघनिकायो-२
(२.३.१३७-१३७)
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू अभिण्हं सन्निपाता सन्निपातबहुला भविस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिका, नो परिहानि ।
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"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू समग्गा सन्निपतिस्सन्ति, समग्गा वुट्ठहिस्सन्ति, समग्गा सङ्घकरणीयानि करिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिका, नो परिहानि |
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू अपञ्ञत्तं न पञ्ञपेस्सन्ति, पञ्ञत्तं न समुच्छिन्दिरसन्ति, यथापञ्ञत्तेसु सिक्खापदेसु समादाय वत्तिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि ।
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू ये ते भिक्खू थेरा रत्तञ्ञू चिरपब्बजिता सङ्घपितरो सङ्घपरिणायका, ते सक्करिस्सन्ति गरुं करिस्सन्ति मानेस्सन्ति पूजेस्सन्ति, सञ्च सोब्बं मञ्ञिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू उप्पन्नाय तण्हाय पोनोब्भविकाय न वसं गच्छिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि ।
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू आरञ्ञकेसु सेनासनेसु सापेक्खा भविस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि ।
"यावकीवञ्च, भिक्खवे, भिक्खू पच्चत्तञ्ञेव सतिं उपट्ठपेस्सन्ति - ‘किन्ति अनागता च पेसला सब्रह्मचारी आगच्छेय्युं, आगता च पेसला सब्रह्मचारी फासु विहरेय्यु'न्ति । वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खूनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि ।
“यावकीवञ्च, भिक्खवे, इमे सत्त अपरिहानिया धम्मा भिक्खूसु ठस्सन्ति, इमेसु च सत्तसु अपरिहानियेसु धम्मेसु भिक्खू सन्दिस्सिस्सन्ति, वुद्धियेव, भिक्खवे, भिक्खून पाटिकङ्क्षा, नो परिहानि ।
१३७. “अपरेपि वो, भिक्खवे, सत्त अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि,
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तं सुणाथ;
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