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चतुर्थ ध्यान को प्राप्त कर विहार करता है। ऐसे ही उस व्यक्ति के लिए जो अपने चित्त को ज्ञान-दर्शन के लिए, मनोमय शरीर के निर्माण के लिए, ऋद्धियों के लिए, दिव्य श्रोत्र - धातु प्राप्त करने के लिए, परचित्तज्ञान के लिए, पूर्वजन्मों को स्मरण करने के लिए, प्राणियों की च्युति और उत्पाद को जानने के लिए अथवा आस्रवों के क्षय के ज्ञान के लिए नवाता है । इस अंतिम अवस्था के प्राप्त होने पर तो वह अपनी प्रज्ञा से जानने लगता है कि यह दुःख है, यह दुःख का समुदय है, यह दुःख का निरोध है, यह दुःख का निरोध कराने वाला मार्ग है । वह इसे भी प्रज्ञा से जानने लगता है कि यह आस्रव हैं, यह आस्रवों का समुदय है, यह आम्रवों का निरोध है, यह आनवों का निरोध कराने वाला मार्ग है। उसके इस प्रकार जानते, देखते उसका चित्त कामानवों से भी मुक्त हो जाता है, भवानवों से भी, अविद्यानवों से भी । तब उसे यह ज्ञान होता है- 'मैं मुक्त हो गया ! मैं मुक्त हो गया !!' वह प्रज्ञापूर्वक जान लेता है- 'जन्म क्षीण हुआ, ब्रह्मचर्य पूरा हुआ, जो करना था सो कर लिया, इससे परे करने को कुछ रहा नहीं ।' जब कोई व्यक्ति इसे इस प्रकार जान लेता है, देख लेता है तब वह ऐसा नहीं कह सकता- 'जो जीव है वही शरीर है या जीव दूसरा और शरीर दूसरा है ।'
भगवान ने कहा मैं स्वयं इसे इस प्रकार जानता हूं, देखता हूं और यह नहीं कहता - 'जो जीव है वही शरीर है या जीव दूसरा और शरीर दूसरा
८. महासीहनादत्त
एक समय भगवान उरुञ्ञा के पास कण्णकत्थल नाम के मृगदाव में विहार करते थे । उस समय अचेल कस्सप ने उनके पास जा कर पूछा क्या यह सही है कि आप सभी प्रकार की तपश्चर्या की निंदा करते हैं और कठोर तपस्या को अनुचित बतलाते हैं ।
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इस पर भगवान ने कहा कि ऐसा कहने वाले मेरे बारे में ठीक से नहीं कहते हैं। मैं कठोर जीवन बिताने वाले और कम कठोर जीवन बिताने वाले- दोनों प्रकार के तपस्वियों की गति को जानता हूं । शरीर छोड़ने के पश्चात इनमें से नरक में भी पैदा होते हैं, स्वर्ग में भी । अतः मैं सभी की निंदा कैसे कर सकता हूं ? जो कोई आर्य अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करेगा वह कहने ही लगेगा कि श्रमण गौतम समयोचित बात बोलने वाला, सच्ची बात बोलने वाला, सार्थक बात बोलने वाला, धर्म की बात बोलने वाला और विनय की बात बोलने वाला है ।
तब अचेल कस्सप ने कहा कि अनेक श्रमणों और ब्राह्मणों के तप ऐसे होते हैं जैसे नग्न रहना, आचार-विचार छोड़ देना, व्रत करना, भिक्षा वा खान-पान के बारे में तरह-तरह के माप दंड
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