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या उनकी संख्या इत्यादि पैरा संख्या से पहले दिये गये हैं । जैसे कि संयुत्तनिकाय के लिये - पहले ग्रंथ का नाम, भाग, वग्ग की संख्या या शीर्षक तथा पैरा संख्या । इसी तरह अङ्गुत्तरनिकाय के लिये ग्रंथ का नाम, भाग, निपात तथा अनुच्छेद संख्या दिये गये हैं । जहां प्रमुख रूप से गाथाएं हैं, जैसे कि धम्मपद इत्यादि में, वहां पैरा संख्या की जगह गाथा संख्या दी गयी है ।
प्रस्तुत ग्रंथ
प्रस्तुत ग्रंथ दीघनिकाय, भाग-१ ( सीलक्खन्धवग्गपाळि ) सुत्तपिटक के प्रथम निकाय, दीघनिकाय के तीन खंडों में से प्रथम खंड है ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि यह प्रकाशन विपश्यी साधकों और विशोधकों के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होगा ।
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निदेशक, विपश्यना विशोधन विन्यास
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