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(९) ऐसे ही ‘पेय्यालों' के अंतर्गत पाए जाने वाले उक्त प्रकार के अंशों को सविस्तार दिया
गया है, जिससे साधक जान पाएं कि भगवान बुद्ध साधना-संबंधी किन बातों पर बल दिया करते थे।
(१०) तिपिटक के प्रत्येक ग्रंथ में समाविष्ट बुद्ध-वचनों का संक्षिप्त सार हिंदी पाठकों के लाभार्थ
दिया जा रहा है।
(११) इसके अतिरिक्त संपूर्ण तिपिटक की विस्तृत भूमिका हिंदी भाषा में प्रकाशित की जा
रही है जिसमें पालि के सहस्राधिक उद्धरण और उनका अनुवाद उद्धरित, संकलित है। इससे हिंदी-भाषी पाठक इस अमूल्य साहित्य का एक विस्तृत विहंगावलोकन कर सकेंगे। इसका अंग्रेजी संस्करण भी यथाशीघ्र प्रकाशित किया जायेगा ।
(१२) अट्ठकथा तथा टीकाओं की वर्णना-संवर्णना शैली को उजागर करने वाली एक पुस्तिका
का भी प्रकाशन किया जायेगा । इससे पालि भाषा का विशेष ज्ञान न रखने वाले पाठकों को इन ग्रंथों को समझने में सुविधा होगी।
(१३) भविष्य में जब कभी विन्यास द्वारा यह पालि साहित्य अन्यान्य भाषाओं की लिपियों में
प्रकाशित किया जायेगा तब ग्रंथवार बुद्ध-वचनों का सार तथा भूमिकाएं तत्संबंधित भाषाओं में प्रकाशित की जायेंगी।
(१४) पहले संपूर्ण तिपिटक और तत्पश्चात क्रमानुसार इसकी अट्ठकथाओं तथा टीकाओं के
प्रकाशन के स्थान पर पिटकीय ग्रंथों के एक-एक समूह का एक साथ प्रकाशन उचित समझा गया है | जैसे कि दीघनिकाय के तीनों भागों के साथ उन्हीं की तीनों अट्ठकथाओं (सुमङ्गलविलासिनी के तीन भाग) और टीकाओं (लीनत्थप्पकासना के तीन भाग और सीलक्खन्धवग्ग अभिनवटीका के दो भाग) के ग्यारह ग्रंथ एक साथ प्रकाशित किये जा रहे हैं। इससे शोधकर्ताओं को दीघनिकाय से संबंधित पालि का सारा साहित्य एक साथ उपलब्ध हो जायेगा और उन्हें शोध-कार्य में सुविधा होगी । इसी प्रकार आगे के प्रकाशन होंगे।
(१५) समस्त संदर्भ विपश्यना विशोधन विन्यास संस्करण के दिये जा रहे हैं। संदर्भ में सर्व
प्रथम ग्रंथ का संक्षिप्त नाम यथा दीघनिकाय के लिये दी० नि०, भाग, उसके बाद पैरा (अनुच्छेद) संख्या दिये गये हैं। जहां पैरा संख्या निरंतर नहीं है वहां शीर्षक उपशीर्षक
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