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की आवश्यकता है। विपश्यना विशोधन विन्यास का इस दिशा में क्रियाशील होना प्रशंसनीय है, श्लाघनीय है, अभिनंदनीय है |
ऐसे विशद, बृहद तथा अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य की भमिका लिखने का दायित्व मैंने स्वयं अपने ऊपर लिया । सोचा था चालीस-पचास पन्नों में सांगोपांग भूमिका तैयार हो जायेगी । परंतु जब इस साहित्य का पुनः अवलोकन करते हुए उद्धरण एकत्र करने लगा तो सद्धर्म के इस विशाल रत्नाकर में डुबकियां लगाते हुए एक से बढ़कर एक प्रेरक प्रसंगों तथा एक से बढ़कर एक अनमोल उद्धरणों के रत्नों से झोली भरती ही गयी। सभी अनमोल रत्न कितने आकर्षक ! कितने कल्याणकारी ! कितने प्रेरक ! दुविधा थी किसे लूं, किसे छोडूं । न चाहते हुए भी अनेकों को छोड़ना पड़ा । छोड़ते-छोड़ते भी सहस्राधिक उद्धरण बच गये जिन सभी का प्रयोग करने में भूमिका का कलेवर बढ़ता ही गया । अतः भूमिका के इस बृहद ग्रंथ को अलग पुस्तकाकार प्रकाशित करना समीचीन समझा । विश्वास है तिपिटक-प्रेमी, हिंदी-भाषी साधकों के लिए यह अत्यंत उपादेय सिद्ध होगा।
भगवद्वाणी तथा तत्संबंधित पालि-साहित्य का प्रकाशन सर्वजनहितकारी हो, सर्वविधि मंगलकारी
हो!
सभी पाठकों का मंगल हो ! कल्याण हो !
सब की स्वस्ति-मुक्ति हो !!
बुद्धपूर्णिमा, १९९३
स. ना. गोयन्का
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