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की औषधि प्रदान कर देना तो रोगी के लिए वरदान है। उसके लिए इससे बढ़ कर आशा और विश्वासभरी बात और क्या हो सकती है भला ? यही बात दुःख की व्याख्या पर लागू होती है, कितनी ही कटु क्यों न हो, पर दुःख जीवन-जगत की एक ऐसी सार्वजनीन सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता । भगवान ने दुःख का मात्र उद्घाटन ही नहीं किया, बल्कि उसके मूलभूत कारण को प्रकाश में ला कर उसे जड़ से उखाड़ फेंकने वाली आर्य-अष्टांगिक-मार्गजन्य विपश्यना की सहज, सुगम, सुग्राह्य साधना-विधि प्रदान की। यह किसी बुद्धिवादी दार्शनिक की महज सैद्धांतिक व्याख्या नहीं है, बल्कि सर्वथा व्यावहारिक है, प्रायोगिक है, चिर-परीक्षित है और प्रत्यक्ष फलदायिनी है। उदासी और कुंठाओं से भरे हुए दुखियारे व्यक्ति को अभी, यहीं आशाभरे परिणाम प्रदान करती है | लोकीय और लोकोत्तर दोनों क्षेत्रों की सुख-शांति उपलब्ध कराती है |
व्यक्ति-व्यक्ति की सुख-शांति के साथ-साथ, जात-पांत के भेदभाव और संप्रदायवाद के विषैले दूषण को दूर कर सारे समाज और राष्ट्र की सुख-शांति और समृद्धि के हितार्थ उनके शाश्वत उपदेश देश के लिए ही नहीं वरन सारे विश्व के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। केसमुत्त के कालामों को दिया हुआ उनका प्रसिद्ध उपदेश मानव-जाति के लिए विचार-स्वातंत्र्य का प्रथम प्रभावशाली घोषणापत्र है । उनकी सारी शिक्षा कट्टरपंथी अंधमान्यताओं से विमुक्त, पुरोहितगिरी के दूषित समाज-शोषण से दूर, पूर्णतया वैज्ञानिक और बुद्धिसंगत है, न्यायसंगत है। इसीलिए लोकमान्य है। जिस व्यक्ति के सदुपदेशों के कारण भारत विश्व-गुरु बना उसकी वाणी का पुनः प्रकाशित होना देश के लिए कल्याणकारी ही नहीं, गौरवपूर्ण भी है।
विपश्यी साधकों के लिए तो तिपिटक एक अतुलित ज्ञान-कोष है | यद्यपि विपश्यना का थोड़ा बहुत उल्लेख ऋग्वेद से लेकर महावीर स्वामी तथा कबीर और नानक जैसे साधक संतों की वाणी तथा भारत की सभी परंपराओं के धर्मशास्त्रों में यत्र-तत्र बिखरा हुआ मिलता है, परंतु व्यावहारिक विपश्यना का प्रामाणिक विशद वर्णन और उसकी सूक्ष्म बारीकियों की अभिव्यंजना तिपिटक छोड़ अन्यत्र कहां मिल सकती है भला ? भगवद्वाणी पढ़ते हुए सुधी साधक को अनेक जगह यों लगता है जैसे भगवान ने उसकी साधना-संबंधी कठिनाइयां जान ली हैं और अमुक उपदेश मानो उसी के लिए दिया गया है। मानो भगवान असीम आश्वासन-भरी वाणी में बड़े प्यार से उसे ही समझा रहे हैं। ऐसी सुधावर्षिणी वाणी का प्रकाशन साधकों के लिए सचमुच वरदान सिद्ध होगा।
भगवान की कल्याणी वाणी का प्रकाशन और गंभीर अध्ययन विदेशों के कतिपय विद्वानों ने किया है । ब्रह्मदेश की बुद्ध शासन समिति, लंदन की पालि टेक्स्ट सोसायटी और श्रीलंका की बुद्धिस्ट टेक्स्ट सोसायटी इस कार्य में अग्रणी रही हैं। भदंत जगदीश काश्यपजी के नेतृत्व में भारत के नव-नालंदा महाविहार ने भी प्रकाशन के महत्वपूर्ण काम की शुरुआत की | अब उसे आगे बढ़ाने
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