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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
मग्गियमंडणतुल्ला या परभावपुण्णया हेया । इय० ॥ ६१ ॥ हीणवणस्सइकाए, उववज्र्ज्जति न कयावि देवावि || इय० ||६२|| कप्पदुगावहिदेवा, जंति खमा जलवणस्सइ ति तए | इय० ॥६३॥ इत्थी न सत्तमाए, पुहवीए जाइ जं तमावहिया || इय० ||६४ || निरयसुरा तयणंतर भवम्मि न लहंति निरयदेवत्तं ॥ इय० ॥६५॥ लहुठिइपुहवीपमुहे, देवा जंति न कणिट्टठाणत्ता || इ० ॥६६॥ दुग्गरक्खणदक्खो, धम्मो सग्गइपदायगप्पवरो ॥ ० ॥६७॥ धम्माओ सुहलद्धी, अहम्मलेसावि दुक्खसेढीआ | इय० ॥६८॥ जा बुद्धी सावज्जे, सा जइ धम्मे तया सुहं विउलं ॥ इय० ॥६९॥ परकंखा परमदुहं, परमसुहं निरहिलासभावत्तं ॥ इय० ॥७०॥ नाणी रमए नाणे, रमइ दुहत्थीजणो य अण्णाणे | इय० ॥ ७१ ॥ चउदसभेया जीवा, इयरे वुत्ता तहेव पुज्जेहिं ॥ इय० ॥ ७२ ॥ पुण्णासवाण भेया, दुगुणिगवीसइपमाण संखिज्जा | इय० ॥ ७३ ॥ बासी भेयपावं, सत्तावण्णप्पयारसंवरणं ॥ इय० ॥७४ || बारसहा णिज्जरणं, भेयचउक्कं तहेव बंधस्स || इय० ॥ ७५ ॥ मोक्खो नवप्पयारो, नवतत्ताई रुइपयाईणि ॥ इय० ॥ ७६ ॥ रसवण्णभेयपणगं, गंधदुगं हत्थिभेयफासो य ॥ इय० ॥७७॥ मइनाणं पणभेयं, चोद्दसवीसप्पयारसुयनाणं ॥ इय० ॥७८॥ ओहिस्स भेयछक्के, दुविणं मणपज्जवं मुणेयव्वं ॥ इय० ॥ ७९ ॥ केवलनाणं पुण्णं इक्कविहं सव्वनाणपाहणं ॥ इय० ॥८०॥ दुविहं परोक्खनाणं, भेयतिगण्णियगरिट्ठपच्चक्खं ॥ इय० ॥८१॥ तहयचउत्थं देसा, पच्चक्ख केवलं च सव्वत्तो ॥ इय० ॥८२॥ अनलानिलकायदुगे गच्छेति सुरा न होणठाणत्ता ॥ इय० ॥८३॥ दुहकारणपरिहारो, कायव्वो सुहहिलासजीवेहिं | इय० ॥८४॥ नूयणकम्मायाणं, बंधोऽणेगप्पभेयभेयड्डो ॥ इय० ॥८५॥ उदओ कम्माणुहवो, उदीरणाऽपत्तकालकम्मुदओ | इ० ॥८६॥ बंधाहीणा सत्ता, सत्ताहीणो न कम्मसंबंधो ॥ इय० ॥८७॥ कम्मठिई रसमाणा, ठिइप्पमाणो न कम्मरसबंधो ॥ इय० ॥८८॥ अप्पसरूवस्स सया, वियारणा बुहजणेहि कायव्वा ॥ इय० ॥८९॥ बंधोदयंतरालं, अबाहकाला न तम्मि कम्मफलं ॥ इय० ॥९०॥ अप्पक्खराहियत्वं सुतं सूयगावबहुभेयं ॥ इय० ॥ ९१ ॥
सुत्तस्थाणं लेसा, निज्जुत्तीए हविज्न वित्थारो ॥ इय० ॥९२॥ निज्जुत्तत्थपयासो, भासे भणिओ विसिट्ठविणेहिं ॥ ० ॥९३ ||
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