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प्राकृतस्तोत्रप्रकाशः
॥ श्रीअभिनन्दनस्वामिस्तोत्रम् ॥ वंदिय वीरजिणिदं, पुज्जपयं नेमिसूरिमिट्ठदयं । अभिणंदणपहुथुत्तं, पणेमि पुण्णट्ठसंकलियं ॥१॥ (आर्यावृत्तम्) वइसाहचउत्थीए, सुक्काए जस्स चवणकल्लाणं । तिण्णाणण्णियविण्णं, तं वंदामो चउत्थजिणं ॥२॥ माहे सियबिइयाए, जायं सियबारसीइ गहियवयं । चउनाणमोणसहियं, वंदे भावा चउत्थजिणं ॥३॥ साहियकेवलनाणं, पोसे सियचोद्दसीपवरदियहे । दंसियपयत्थतत्तं, वंदे भावा चउत्थपहुं ॥४॥ देवाणं पणभेया, नरभावदवियसुधम्मजिणएहिं । इय तत्तगोवएस, वंदे भावा चउत्थपहुं ॥५॥ छल्लेसाओ भणिया, छक्काया सत्तभेयभिन्नभयं ।। इय० ॥६।। आया तहट्ठभेओ, नवभेय नियाणसीलगुत्तीओ ॥ इय० ॥७॥ सामायारी दसहा, मुणीण धम्मोऽवि तारिसो चेव ॥ इय० ॥८॥ इक्कारस पडिमाओ, सावगधम्मो दुवालसपयारो ॥ इय० ॥९॥ बारसमासा वरिसे, बारसविहभावणा सुपडिमाओ || इय० ॥१०॥ अंबुहिसमसंसारो, जम्मजरामरणवारिधरणाओ ॥ इय० ॥११॥ तत्थ थिरं नत्थि सुहं, सिद्धाणं तं थिरं निराबाहं ॥ इय० ॥१२॥ विसया किंपागसमा, दुग्गइवियरणवियक्खणा भीमा ॥ इय० ॥१३।। मिच्छासम्मट्टिी, जा गेविज्जं तओ विमलसड्डा । इय० ॥१४|| आइल्ला लेसाओ, असुराइयवंतरेसु चत्तारि ॥ इय० ॥१५।। इक्का य तेयलेसा, जोइसवेमाणियाइकप्पदुगे ॥ इय० ॥१६।। निम्मलसंजमभावा, होज्जाणुत्तरसुरत्तणं सिटुं ॥ इय० ॥१७|| एगावयारिदेवा, नियमा सव्वट्ठसिद्धयविमाणे ॥ इय० ॥१८॥ सियपक्खियाण नूणो, संसारो कण्हपक्खियाणऽहिओ ॥ इय० ॥१९॥ तइयनपुंसगवेओ, निरयाणं वासवाण वेयदुगं । इय० ॥२०॥ नरतिरियाणं वेया, तिण्णि पणिदियविसिट्ठसण्णाणं ॥ इय० ॥२१॥ युगलियनरतिरिजीवा, देवा नियमेण होज्ज मरिऊणं ॥ इय० ॥२२।। मणुयत्तप्पाहण्णं, चरणेणं निम्मलेण नण्णेणं ॥ इय० ॥२३॥ लहुओ वरतिरिलोओ, उड्डयलोओ तओ य संखगुणो ॥ इय० ॥२४॥ अहलोओ य विसेसा-अहिओऽहियसत्तरज्जुमाणाओ ॥ इय० ॥२५।। अट्ठारस सयजोयण-माणो तिरिलोयओ मुणेयव्वो ॥ इय० ॥२६।। हीणसगरज्जुमाणो, जिणेहि कहिओ य उड्डलोय त्ति ॥ इय० ॥२७॥