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जिनप्रतिमा मानने और पूजने की चर्चा
२- श्रीसूयगडांगसूत्र की नियुक्ति में श्रीजिनप्रतिमा को देखकर आर्द्रकुमार को प्रतिबोध हुआ और जब तक उसने दीक्षा ग्रहण नहीं की तब तक वह उस प्रतिमा की प्रतिदिन पूजा करता रहा ।
३- श्रीसमवायांगसूत्र में समवसरण के अधिकार के लिये श्रीकल्पसूत्र का उदाहरण दिया है । इसीप्रकार श्रीबृहत्कल्पसूत्र के भाष्य में समवसरण के स्वरूप का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उसमें लिखा है कि समवसरण में अरिहंत स्वयं पूर्व दिशा सन्मुख विराजते हैं और दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तीन दिशाओं में उनके तीन प्रतिबिम्ब (जिनमूर्तियाँ) इन्द्रादि देवता विराजमान करते हैं। यहाँ आनेवाले तीर्थंकर को वन्दन करते है वैसे ही उनके प्रतिबिम्बों को भी वन्दन करते हैं।
४- श्रीभगवतीसूत्र में कहा है कि जंघाचारण मुनि नन्दीश्वर द्वीप में शाश्वती जिन-प्रतिमाओं को वन्दन-नमस्कार करने के लिए जाते हैं।
५- श्रीभगवतीसूत्र में तुंगिया नगरी के श्रावकों द्वारा जिनप्रतिमा पूजने का वर्णन है।
६- श्रीज्ञातासूत्र में द्रौपदी (पांडव राजा की पुत्रवधू)ने जिनप्रतिमा की सत्तरह-भेदी पूजा की तथा नमस्काररूप नमुत्थुणं का पाठ पढा, ऐसा वर्णन है।
७- श्रीउपासकदशांगसूत्र में आनन्द आदि दस श्रावकों के जिनप्रतिमा वंदन-पूजन का अधिकार है।
८- श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र में साधु द्वारा जिनप्रतिमा की वैयावच्च करने का वर्णन है।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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