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सद्धर्मसंरक्षक
जिनप्रतिमा मानने और पूजने की चर्चा
सौदागरमल के साथ मुँहपत्ती तथा प्रतिमा- दोनों विषयों की चर्चा आपने की थी। क्योंकि मुँहपत्ती की चर्चा के विषय में इससे पहले लिखा जा चुका है; इसलिये उसका यहाँ पिष्टपेषण आवश्यक नहीं है। जिज्ञासु वहां से देख लें। अब जिनप्रतिमासम्बन्धी चर्चा संक्षेप से लिखेंगे ।
सौदागरमल - स्वामीजी ! तीर्थंकर की मूर्ति मानना सर्वथा अनुचित है। इसकी पूजा से षट्काय के जीवों की विराधना (हिंसा) होती है । तीर्थंकर भगवन्तों ने आगमों में हिंसा को धर्म नहीं बतलाया । मूलागमों में मूर्ति को मानने का कोई उल्लेख नहीं है । इसलिये आप जैसे मुमुक्षु मुनि को ऐसा उपदेश देना शोभा नहीं देता ।
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ऋषि बूटेरायजी • जैनागमों, सूत्रों, शास्त्रों के मूलपाठों में इन्द्रादि देवताओं, श्रावक-श्राविकाओं और साधु-साध्वीओं सब सम्यग्दृष्टियों के द्वारा जिनप्रतिमा को वन्दन, नमस्कार, पूजन आदि के अनेक पाठ विद्यमान हैं। जिससे उन सब ने उत्तम फल की प्राप्ति की है। यहाँ तक कि केवलज्ञान पाकर मोक्ष तक प्राप्त किया है। जिसका बडे विस्तार पूर्वक वर्णन है । उनका विवरण संक्षेप से इस प्रकार है -
(अ) १ - श्रीआचारांगसूत्र में प्रभु महावीर के पिता सिद्धार्थ राजा को श्रीपार्श्वनाथसंतानीय श्रावक कहा है । उसने जिनपूजा के लिये लाख रुपए खर्च किये और अनेक जिनप्रतिमाओं की पूजा की । इस अधिकार में जायअ शब्द आया है । इसका अर्थ 'देवपूजा' है ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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