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उग्र विरोध का झंझावात
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तुम को मालूम पड जाता कि कौन सच्चा है और कौन झूठा है।' इसलिए आप कृपा करके एक बार मेरे साथ स्यालकोट अवश्य चलो ।"
आपने कहा कि "वि० सं० १८९९ में स्यालकोट में ऋषि अमरसिंह तथा भाई सौदागरमल भावडे से चर्चा हो चुकी है। वे लोग सत्य वस्तु को मानने को तैयार नहीं हुए। इसलिए वहाँ जाकर चर्चा करने से कोई लाभ होनेवाला नहीं है ।"
तपस्वी ने कहा - "स्वामीजी ! आप एक बार फिर मेरे साथ स्यालकोट अवश्य चलो। आपकी बड़ी कृपा होगी। चर्चा मेरे सामने हो जावे तो आपका इसमें क्या हर्ज है ?"
आपने कहा "तपस्वी! यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं अवश्य चलूंगा ।" अब तपस्वी आपको साथ लेकर स्यालकोट में जा पहुंचा। वहाँ सौदागरमल भावडा बत्तीस सूत्रों का अच्छा जानकार था। उस के साथ आपकी मुँहपत्ती तथा प्रतिमा के विषय में कई दिनों तक चर्चा चलती रही । अन्त में वह निरुत्तर हो गया । फिर वह कहने लगा कि मैं कौनसे सूत्र पढा हुआ हूँ । हमारे गुरुओं के साथ चर्चा करो तो पता लगे । यदि स्थानकमार्गी साधु तुम्हारी बात को मान लेंगे तो हम लोग भी तुम्हारी श्रद्धाको मान लेंगे ।"
आपने सौदागरमल से कहा- "हम दोनों की चर्चा तो तपस्वीजी आदि ने सुन ली है। जब तुम्हारे गुरु चर्चा करने के लिये आवेंगे तब देखा जावेगा। मैं तो इसके लिए भी सदा तैयार हूँ।"
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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