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उग्र विरोध का झंझावात
५१ सब जगह चिट्ठियाँ डलवा दी कि "बूटेराय की न कोई संगत करे, न उस से मिले, न उसको ठहरने के लिये स्थान दे और न ही कोई उसका व्याख्यान सुनने जावे।" सारे पंजाब में खूब जोरशोर से आन्दोलन शुरू कर दिया कि "बूटेराय गुजरांवाला, रामनगर आदि स्थानों में बैठा रहे तो उसकी मरजी। यदि हमारे क्षेत्रों में आवे तो उसका वेष उतार लिया जावे, छीन लिया जावे, और उसे पंजाब से भगा दिया जावे । यह भी क्या याद करेगा ?" इस प्रकार सारे पंजाब में आपके विरोध की आग भडक उठी । उस समय आप अकेले ही थे। दूसरा साधु आपके साथ कोई न था। आपके चार चेले बाइसटोले (स्थानकमार्गी) के थे। दो मालेरकोटले में हुए थे, तीसरा खरड नगर का अग्रवाल बनिया था और चौथा पंजाब का एक जाट था । इन चारों में से दो तो आपका साथ छोड गये थे, जाट वेष छोड कर निकल गया था और चौथा मर गया था । स्थानकमार्गी साधु लालचंदजी का एक चेला जिसका नाम प्रेमचन्द था वह दीक्षा छोडकर आपके पास आ गया। इस की आयु पंद्रह-सोलह वर्ष की थी। वह पुनः दीक्षा लेकर आपके साथ तीन चार वर्षों तक विचरता रहा । आप के पास इसने कुछ आगमशास्त्रों का अभ्यास भी किया। जब उसकी यौवनावस्था हुई तब उसने एक दिन एकांत में आप से कहा कि "गुरुजी ! मेरा मन डाँवाडोल हो गया हैं, कामवासना जाग्रत हो उठी है। इसलिये मैं साधु के वेष को छोडकर गृहस्थ के वेष में चला जाना चाहता हूँ।" उसकी आप पर बहुत श्रद्धा थी, इसलिये उसने आपके अपने मनोगत भाव निःसंकोच कह डाले । आपने उसे संयम में दृढ रखने के लिये बहुत समझाया, पर उसके भाव न बदले। आपसे बोला
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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