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सद्धर्मसंरक्षक इतनी चर्चा से यह स्पष्ट है कि खुले मुंह बोलने से होने वाली जीवों की हिंसा से बचने के लिये मुखपत्ती को चौबीस घंटे मुख पर बाँधे रखना सर्वथा अनुचित है।
फिर जिनप्रतिमा को मानने और पूजने के विषय में भी चर्चा होती रही। इसके लिये आगमों के प्रमाण भी दिये गये ।।
इस प्रकार कई दिनों तक चर्चा चलती रही । ऋषि अमरसिंहजी के पास अब कोई युक्ति अपने पक्ष की सत्यता सिद्ध करने के लिये नहीं थी। परन्तु परिणाम कुछ न निकला । ऋषि अमरसिंहजी अपने साधुओं को साथ लेकर दूसरे दिन प्रातःकाल ही स्यालकोट से विहार कर गये। फिर आपके अनुयायी रामनगरवाले भाई स्यालकोटवालों को कदाग्रही जान कर वहाँ से रामनगर वापिस चले गये । इस चर्चा का परिणाम यह आया कि आपके अनुयायियों की श्रद्धा और भी दृढ हो गई । ऋषि बूटेरायजी भी कुछ दिनों बाद स्यालकोट से विहार कर जम्मु चले गये। वहाँ के अनेक श्रावकों ने
आपकी श्रद्धा को स्वीकार किया। यहाँ से आपने रामनगर की तरफ विहार किया। उग्र विरोध का झंझावात
ऋषि अमरसिंहजी ने पूज्य बूटेरायजी के विरोध में सारे पंजाब में अपने अनुयायी संघो को शाही-फरमान जारी कर दिया ।
१. पूज्य बूटेरायजी ने स्वलिखित "मुंहपत्तीचर्चा" की पुस्तक में बहुत विस्तार से इस विषय का स्पष्टीकरण किया है। यहाँ तो हमने संक्षेप से ही लिखा है। विशेष जानने की रुचिवाले वहाँ से देखें।
२. जिनप्रतिमा की चर्चा के विषय में अन्यत्र लिखेंगे।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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