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सद्धर्मसंरक्षक
सम्यग्दृष्टि है अथवा मिथ्यादृष्टि है? (उत्तर) हे गौतम ! हम इसका खुलासा इसी आगम के तृतीय शतक के प्रथम उद्देश में सनत्कुमार के वर्णन में कर आये हैं, उसके अनुसार समझ लेना।
यहाँ पर भी मुख को ढाँकना कहा है, बाँधना नहीं कहा ।
ऋषि अमरसिंहजी - आगमों में मुँह को ढाँक कर बोलने को कहा है ऐसा आपने भगवतीसूत्र के पाठ से स्पष्ट कहा है। तो मुख पर मुँहपत्ती बाँधना स्वतःसिद्ध हो गया ?
१ सनत्कुमार देवराज का प्रसंग इस प्रकार है :
(प्रश्न) सणंकुमारे णं भंते ! देविंदे देवराया किं भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए ? सम्मट्टिी, मिच्छादिट्ठी? परित्तसंसारए, अणंतसंसारए ? सुलभबोहिए, दुल्लभबोहिए? आराहए, विराहए ? चरिमे, अचरिमे? __ (उत्तर) गोयमा ! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धीए, नो अभवसिद्धीए, एवं सम्मद्दिट्ठी, परित्तसंसारए, सुलभबोहिए, आराहए, चरमे पसत्थं नेयव्वं ।
(प्रश्न) से केणद्वेणं भंते?
(उत्तर) गोयमा ! सणंकुमारे देविदे देवराया बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं हिअकामए, सुहकामए, पत्थकामए, आणुकंपिए, निस्सेयसिए, हिय-सुह(निस्सेयंसिय निस्सेसकामए), से तेणटेणं गोयमा सणंकुमारे णं भवसिद्धीए, जाव नो अचरिमे।
अर्थात् - (प्रश्न) हे भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवताओं का राजा सनत्कुमार भवसिद्धिक है, अथवा अभवसिद्धिक है ? सम्यग्दृष्टि है अथवा मिथ्यादृष्टि है ? मितसंसारी है अथवा अमित- अनन्तसंसारी है ? सुलभ बोधवाला है अथवा दुर्लभ बोधवाला है ? आराधक है अथवा विराधक है ? चरम है अथवा अचरम है? ___ (उत्तर) हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक है पर अभवसिद्धिक नहीं, इसी प्रकार वह सम्यग्दृष्टि है मिथ्यादृष्टि नहीं, मितसंसारी है अनन्तसंसारी नहीं, सुलभ बोधवाला है दुर्लभ बोधवाला नहीं, आराधक है विराधक नहीं, चरम है अचरम नहीं, अर्थात् इस सम्बन्ध में सब प्रशस्त जानना ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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