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मुखपत्ती चर्चा
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ऋषि बूटेरायजी १ आगम में कहीं भी मुखपत्ती को डोरा डाल कर अथवा किसी अन्य प्रकार से भी चौबीस घंटे मुँह पर मुखपत्ती बाँधने का उल्लेख नहीं है। जहाँ पर भी प्रसंग आया है, हाथ से अथवा हाथ में ही मुखपत्ती रख कर मुख को ढाँकने के लिये कहा है। वह भी मात्र बोलते समय अथवा पडिलेहण आदि करते समय के लिये कहा है। यदि चौबीस घंटे अथवा व्याख्यानादि के समय मुँहपत्ती बाँधने का आगम प्रमाण हो तो दिखलाइये । और यदि मुँहपत्ती बँधी हो तो फिर ढाँकने का प्रयोजन ही नहीं रहता।
२- दूसरी बात यह है कि वायुकाय आठस्पर्शी है और मुख की बाष्प अथवा शब्द चारस्पर्शी हैं । अतः वायुकाय की हिंसा में शब्द, बाष्प अथवा दोनों मिलकर भी चारस्पर्शी होने से अशक्त हैं । इसलिये खुले मुँह बोलने से वायुकाय आदि जीवों की हिंसा संभव नहीं है।
३- मनुष्य के मल, मूत्र, थूक, श्लेष्म आदि १४ अशुचियों में स जीवों की उत्पत्ति होती है। यहाँ तक कि सम्मूच्छिम असंजी पंचेन्द्रिय मनुष्य आदि जीव भी उत्पन्न होते हैं, जैनागमों में ऐसा स्पष्ट कहा है। बोलते समय मुख से बाष्प तथा थूक आदि निकलने से मुँह बाँधे रहने से मुख के चारों तरफ थूक के जमा होने के कारण आगम-प्रमाण से सम्मूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है ।
(प्रश्न) हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ?
(उत्तर) हे गौतम! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहुत श्रमणों, बहुत श्रमणियों, बहुत श्रावकों और बहुत श्राविकाओं का हितेच्छु है, सुखेच्छु है, पथ्येच्छु है, उन पर अनुकंपा करनेवाला है, उनका निःश्रेयस चाहनेवाला है तथा उनके हित का, सुख का तथा निःश्रेयस का अर्थात् इन सब का इच्छुक है। इसलिये हे गौतम! वह सनत्कुमार इन्द्र भवसिद्धिक है यावत् वह चरम है, पर अचरम नहीं । (भगवती शतक ३ उद्देश १)
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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