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सद्धर्मसंरक्षक ऐसा करते हैं। और मुखपत्ती मुख पर न बांधने से वायुकाय जीवों की हिंसा होती है। पंचमांग श्रीभगवतीसूत्र के शतक १६ उद्देश २ में शक्रेन्द्र के प्रसंग में खुले मुंह बोलने से भगवान् महावीर ने उसकी भाषा को सावध कहा है। सावध शब्द का अर्थ है हिंसा आदि दोष वाली।
ऋषि बूटेरायजी - १) विपाकसूत्र में वर्णन है श्रीगौतमस्वामी को रानी मृगादेवी ने कहा कि अपने मुख पर मुँहपत्ती बाँध लो क्योंकि जिस रोगी के पास हम लोग जा रहे हैं उसके शरीर से बहुत दुर्गन्ध छूट रही है। यदि गौतमस्वामी के मुख पर मुंहपत्ती बंधी होती तो बाँधने को क्यों कहा? इस से स्पष्ट है कि गौतमस्वामी के मुख पर मुँहपत्ती बँधी नहीं थी। दुर्गन्ध से बचने के लिये उनको मृगादेवी ने वस्त्र से मुंह-नाक को ढॉकने के लिये कहा था, वह भी मात्र उतने ही समय के लिये, जब तक वे उसके पास रहे । परन्तु सावध भाषा अथवा वायकाय की हिंसा से बचने के लिये नहीं कहा । जैन श्रमण सदा नंगे सिर रहता है। यदि उसका सिर फोडे-फुसियों से भर जावे और मक्खियों के उपद्रव को रोकने के लिये सिर को कपडे से ढाकना पडे, तो उसका प्रयोजन सिर को प्रति दिनरात चौबीस घंटे जीवनपर्यंत ढाँकने का नहीं है। यदि कोई व्यक्ति इस प्रमाण को देकर चौबीस घंटे जीवनपर्यंत सिर ढाँकने का सिद्धान्त बना ले तो विचक्षण लोग उसे बेसमझ ही कहेंगे। वैसे ही इस प्रसंग से भी समझना चाहिये।
१ ऋषि रामलालजी के साथ चर्चा के प्रसंग पर विपाकसूत्र के पाठ के साथ इस का विवेचन कर आये है (पृष्ठ १८-१९) । अतः जिज्ञासु पाठक उसे पढ आये है। नहीं ध्यान में हो तो वहाँ से देख लें। इसलिये यहाँ पिष्टपेषण करना उचित नहीं समझा।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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