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मुखपत्ती चर्चा
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दिलबागराय बोला “भाईसाहब ! हमारी फक्क (धान के छिलके) रूप मिथ्या श्रद्धा तो एकदम ऊड गई है। अब तो हमारे शुद्ध चावल के समान श्रीवीतराग केवली भगवन्तों के आगम-सम्मत जिन-प्रतिमा-पूजन करने तथा मुखपत्ती मुख पर न बाँधने का शुद्ध श्रद्धान है। यदि आप लोगों को फक्क उडानी है और शुद्ध चावल प्राप्त करने हैं, तो आ जाओं पूज्य बूटेरायजी की शरण में और उनके सत्यमार्ग को अपनाओ, आगे तुम्हारी इच्छा ।" इत्यादि परस्पर खूब खैंचातान बढ गयी । फिर वहाँ के भाइयों ने कहा कि चौमासे उठे बूटेरायजी को साथ लेकर एक बार यहाँ आ जाओ । उस समय ऋषि अमरसिंहजी भी यहीं होंगे। तब जो चर्चा होगी और उसके परिणामस्वरूप जो बात सच्ची होगी वह मान ली जायेगी । ये लोग ऊपर से तो ऐसी मीठी बातें करते पर इनके मन में कपट था । स्यालकोट में चर्चा करनी निश्चित् हो गयी । चौमासा उठते ही रामनगर के कुछ भाइयों के साथ आप स्यालकोट गये और चर्चा प्रारम्भ हो गई ।
मुखपत्ती-चर्चा
चर्चा का विषय था - १ " क्या मुखपत्ती को मुँह पर बाँधना आगम-सम्मत है और न बाँधने से हिंसा होती है अथवा नहीं ? २-जिन-प्रतिमा तीर्थंकरदेव की मूर्ति है और उसकी तीर्थंकर के समान वन्दना-पूजा करना जैनागम सम्मत है अथवा नहीं ?"
ऋषि अमरसिंहजी - प्रभु महावीर के साधु-साध्वी अपने मुख पर मुँहपत्ती बाँधते थे, उसका प्रमाण श्रीविपाकसूत्र में प्रथम गणधरदेव श्रीगौतमस्वामी का विद्यमान है । इस लिये हम लोग भी
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [33]