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सद्धर्मसंरक्षक
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जानकार थे। पूज्य बूटेरायजी ने यहाँ के भाइयों से भी अपनी श्रद्धा के विषय में प्रकाश डाला और गुजरांवाला, पपनाखा, गोदलांवाला, किला- दीदारसिंह के भाइयों के साथ इस विषय की चर्चा के पश्चात् उनकी जिन - प्रतिमा पूजन तथा मुख पर मुँहपत्ती न बाँधने की श्रद्ध को स्वीकार करने की बात कही । यहाँ के भाई बोले कि "स्वामीजी ! यदि लाला मानकचन्दजी गद्दिया हकीम आपकी श्रद्धा को प्रमाणिक मान लेंगे, तो हम भी सभी आप की बात को स्वीकार कर लेंगे । हकीमजी बुद्धिमान है, शास्त्रों के जानकार हैं, उनके साथ चर्चा कर लो।" अब लाला मानकचन्दजी के साथ आपकी चर्चा होने लगी । बहुत दिनों तक चर्चा चलती रही । अन्त में हकीमजी ने भी प्रतिबोध पाया। परिणाम स्वरूप यहाँ के सब जैन परिवारों ने भी आपके श्रद्धान को स्वीकार कर लिया।
इसी चौमासे में रामनगर का भाई दिलबागराय अपने ससुराल स्यालकोट में गया । वहाँ उससे ऋषि अमरसिंहजी तथा भाई सौदागरमल (यह बत्तीस सूत्रों का जानकार गृहस्थी था) इन दोनों ने कहा कि "तुम चौमासे उठे बूटेरायजी को और रामनगर के भाइयों को साथ लेकर स्यालकोट में आना । हमारे साथ चर्चा करने से तुम्हारी श्रद्धा बूटेरायजी पर से इस प्रकार उड़ जायेगी जैसे चावलों पर से उतरी हुई फक्क (छिलके) वायु के वेग से उड़ जाती है। "
हुआ। लाला गुलाबचन्द का पुत्र अमीरचन्द । अमीरचन्द के चार पुत्र- १ - जयदयाल, २-मैयादास, ३-खुशालचन्द, ४ - गंगाराम । खुशालचन्द का बेटा परमानन्द । इसने संवेगी तपागच्छ जैनसाधु की दीक्षा ली। नाम उमंगविजय रखा गया। बाद में आचार्य पदवी पाकर विजयउमंगसूरि बने । आप श्रीविजयवल्लभसूरिजी के प्रथम शिष्य श्रीविवेकविजयजी के शिष्य थे। आपका स्वर्गवास अहमदाबाद में हुआ ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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