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सत्य प्ररूपणा की और
३१ गये । और वहाँ से रामनगर में गये। सब जगह "पूज्य बूटेरायजी की श्रद्धा महाखोटी है, उसकी संगत मत करना, यदि तुम्हारे नगर में आवे तो उसका साधुवेष छीन लेना और उसे नंगा करके भगा देना ।" ऐसा प्रचार करते हुए वहाँ से अपने श्रावक भाईयों को ढूंढकपंथ में दृढ करके स्यालकोट में जाकर चौमासा किया। बाद में आपने भी पपनाखे को विहार किया। वहाँ पहुँचने पर वहाँ के भाइयों ने भी आपके साथ चर्चा की और सब परिवारों ने आपके श्रद्धान को स्वीकार कर लिया । वहाँ से दक्षिण की ओर दो-तीन मील की दूरी पर किला-दीदारसिंह नामक गाँव में गये । वहाँ के भाईयोंने भी आपके साथ चर्चा की और आपकी बात को सत्य समझ कर स्वीकार कर लिया । वहाँ से लगभग बीस-पच्चीस मील पश्चिम की ओर रामनगर में गये और वि० सं० १८९९ (ई० स० १८४२) का चौमासा रामनगर में किया । यहा लाला मानकचन्दजी गद्दिया हकीम (वैद्य) जैन आगमों के अच्छे
१ लाला मानकचन्दजी गद्दिये का परिचय :- आप बीसा ओसवाल (भावडा) गद्दिया गोत्रीय थे। आपके पुरखा घोडावाली रावलपिंडी के रहनेवाले थे । जटमल तत्पुत्र जीवनलाल तत्पुत्र पंजुशाह अपने परिवार को साथ लेकर रावलपिंडी से रामनगर चला आया । इसके चार बेटे थे- १-सहजराम, २-जवाहरमल, ३रतनचन्द, ४-गुलाबचन्द । सहजराम के दो बेटे थे- १-घनैयालाल, २-रामकौर । रामकौर के चार बेटे थे-१-उष्णाकराय, २-भीमसेन, ३-अर्जुनदास, ४-मानकचन्द । यह मानकचन्दजी रामनगर में हकीम (चिकित्सक) थे । इन्हीं के साथ ऋषि बूटेरायजी की चर्चा हुई। जिसके परिणाम स्वरूप रामनगर के सब जैन परिवारों ने शुद्ध श्वेताम्बर जैनधर्म को स्वीकार कर लिया। लाला जवाहरमलजी के दो पत्र थे। १-राजकौर, २-धर्मयश। धर्मयश के चार बेटे थे-१-लालचन्द, २-मुसद्दीलाल, ३हेमराज, ४-कृपाराम । शाह कृपारामजी ने पूज्य बूटेरायजी के पास वि० सं० १९०८ (ई० स० १८५१) में दिल्ली में दीक्षा ग्रहण की । तब आपका नाम श्रीवृद्धिचन्दजी
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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