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________________ ३० सद्धर्मसंरक्षक को स्वकपोल-कल्पित और मिथ्यादृष्टि कहता है। इसलिये इसका संग मत करना । इसके चंगुल में न फँस जाना । यह तो पहले मिथ्यात्व - गुणस्थान का धनी हैं। इस का वेष छीन लो और अपने नगर से निकाल बाहर कर दो।" यह सुनकर सेठ गुलाबरायजी बरड से न रहा गया और वह बोले - "स्वामीजी ! आप तो अपने आपको आत्मार्थी मानते हो न ! कुछ तो सोच-विचार कर बोलो। भाषासमिति का पालन तो करो । हम लोगों को पूज्य बूटेरायजी ने आगमों के प्रमाण दिखला दिये हैं, इस लिये हमें उनकी श्रद्धा पर तो संशय नहीं है। आपके कहने से पूज्य बूटेरायजी मिथ्यादृष्टि नहीं हो जावेंगे । आप पूज्य बूटेरायजी को पहले गुणठाणे कहते हो, कुछ तो विचार करके बोलो। हमें तो ऐसा मालूम होता है कि आप पूज्य बूटेरायजी से भी हेठे (निकृष्ट) हैं । यदि बूटेरायजी मिथ्यादृष्टि हैं, तो तुम उससे भी नीचे के गुणठाणे में हो । पर मिथ्यात्व - गुणठाणे से नीचे कोई गुणठाणा है नहीं, इस लिये तुम्हारी गिनती किस गुणठाणे में की जावे ? तुम खुद ही बतलाओ ।" इस प्रकार चौदह-पंद्रह दिनों तक ऋषि अमरसिंहजी ने इन श्रावकों के साथ चर्चा की। एडी से चोटी तक जोर लगाया, पर उनकी एक न चली । श्रावक भाइयों ने कहा कि "यदि हिम्मत हो तो हमारे सामने पूज्य बूटेरायजी के साथ चर्चा करो, पर शर्त यह होगी कि यदि चर्चा से आप अपने पक्ष की सच्चाई सिद्ध न कर सके तो आपको पूज्य बूटेरायजी की श्रद्धा स्वीकार करनी पडेगी ।" ऋषि अमरसिंहजी लाचार होकर गुजरांवाला से विहार कर गये और यहाँ से पाँच मील पश्चिम की ओर पपनाखा नामक गाँव में गये। वहाँ से किला - दीदारसिंह में Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [30]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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