________________ 224 सद्धर्मसंरक्षक बालब्रह्मचारी श्रीबूटेरायजी महाराज इस काल में संवेगी साधुसंस्था के आदि जनक कहलाये / आपकी निःस्पृहता अजब थी। पंजाब से लेकर गुजरात, सौराष्ट्र तक समस्त जीवन में जैनधर्म का डंका बजाने में आप अलौकिक पुरुष के रूप में निखरे / सद्धर्म के संरक्षण के लिये प्राणों की बाजी लगा कर सच्चे वीर पुरुष कहलाये और अपने पीछे उज्ज्वल वैराग्य और चारित्रसम्पन्न शिष्य-समुदाय को छोड गये। जिनके नामों और कार्यों से आज भी जैन समाज जयवन्ता है। आप के शिष्य 35 थे और आज भी आप के समुदाय के साधु-साध्वीयाँ एक हजार से कम तो नहीं होंगे, अधिक ही होंगे / आपके पश्चात् पंजाब में श्रीविजयानन्दसूरि, उनके पट्टधर श्रीविजयवल्लभसूरि के समुदाय के साधु-साध्वीयों के सिवाय किसीने विचरने की कृपा नहीं की यह खेद का विषय है। पंजाब में ज्ञान, चारित्र सम्पन्न संवेगी श्वेताम्बर साधु-साध्वीयों का विहार आज भी उतना ही आवश्यक है जितना कि सद्धर्मसंरक्षक पूज्य बूटेरायजी अथवा श्रीआत्मारामजी महाराज के समय में था / हर्ष का विषय है कि फिर भी आचार्यश्री विजयवल्लभसूरिजी के पट्टधर जिन-शासन-रत्न शांतमूर्ति आचार्यप्रवर श्रीविजयसमुद्रसूरिजी महाराज 85 वर्ष की वृद्धावस्था में शरीर अस्वस्थ तथा जंघाबल के जवाब दे जाने पर भी अपने शिष्य-परिवार के साथ इस धरती को सद्धर्म से सिंचन कर रहे हैं। वन्दन हो इस सद्धर्मसंरक्षक सत्यवीर श्रीबुद्धिविजय (बूटेरायजी) की साधुता को / Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [224]