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आपका नाम आचार्य
श्रीबुद्धिविजयजी महाराज द्वारा प्रतिबोधित मुख्य श्रावक आत्मारामजी ने दीक्षा ली नाम आनन्दविजय रखा आचार्य पदवी के बाद श्रीविजयानन्दसूरिजी हुआ। (१) उपर्युक्त विवरण में २१ नाम आये हैं । इनमें से x निशान वाले ७ साधु आप का साथ छोडकर कोई मर गया, कोई भाग गया, कोई यति हो गया और कोई लुंकामती ही रहा।
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(२) बाकी के १४ शिष्य जीवनपर्यन्त चारित्र का पालन करते हुए स्वर्गवासी हुए।
(३) इनके अतिरिक्त और किस-किस ने दीक्षा लेकर आपका शिष्य होने का सौभाग्य प्राप्त किया इसका विवरण प्राप्त नहीं हो पाया ।
श्रीबुद्धिविजयजी महाराज द्वारा प्रतिबोधित मुख्य श्रावक
पंजाब में स्थानकमार्गी (लुंकामत) के प्रसार के साथ एक बात विशेष उल्लेखनीय है और वह यह है कि उस समय श्रावकवर्ग भी थोकडों, बोल-विचारों तथा जैनागम-सूत्रों के अभ्यासी होते थे । प्रत्येक नगर और गाँव में स्थानकवासियों के मान्य ३२ आगम सूत्रों का जानकार एकाध श्रावक तो अवश्य मिल ही जाता था । संवेगियों के समान आगमादि पढने के लिये उपधान, योग आदि वहन करने के लिये कोई शर्त नहीं थी। इसका परिणाम यह हुआ कि जहाँ साधु नहीं पहुँच पाते थे वहाँ पर भी जैनधर्म के अनन्य
श्रद्धालु विद्वान श्रावक आगमादि के व्याख्यान, पठन-पाठन द्वारा जिनधर्मियों को लाभान्वित करते थे । यही कारण था कि श्रावकश्राविकाएं लुंकापंथ के आचार-विचार में दृढ रहते चले आ रहे थे। यति लोग भी श्रावकों को शास्त्र - बोध कराने में दिलचस्पी रखते थे ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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