________________
२१४
सद्धर्मसंरक्षक इन साधु-साध्वीयों के व्याख्यान में थोकडों, बोल-विचारों और आगम-शास्त्रों के जानकार श्रावकों की भी उपस्थिति रहती थी। जिससे व्याख्यान करनेवाले साधु-साध्वीयों को बहुत सतर्कता के साथ व्याख्यान करना होता था। यदि वे लोग आगम के मूल पाठ
और टब्बा अर्थ में कोई स्खलना कर जाते, तो विद्वान श्रावक उन्हें तुरन्त सावधान करते । पूज्य बूटेरायजी तथा श्रीआत्मारामजी के चारित्रों से आप स्पष्ट जान पायेंगे कि प्रभु महावीर के शुद्धमार्ग की प्ररूपणा तथा सद्धर्म के पुनरुत्थान में इन्हीं विद्वान सुश्रावक रत्नों के सहयोग से ही आप दोनों गुरु-शिष्य को सफलता मिली थी। आज के समान यदि उस समय भी श्रावकवर्ग को जैन आगम-सूत्रों का अभ्यास न होता तो उन आगम-शास्त्रों के अर्थों के सत्य-झूठ का निर्णय श्रावकवर्ग तथा मुनिद्वय कदापि न कर पाते । सत्य-झूठ का निर्णय न करपाने से इनके लिये सफलता कोसों दूर रहती। अन्धे को दर्पण से जैसे कोई लाभ नहीं वैसे ही सामनेवाले को आगमज्ञान के बिना बड़े से बडा विद्वान भी प्रतिबोध देने में प्रायः असफल रहता है।
अन्यलिंगियों द्वारा फैलाये हुए मिथ्यात्वांधकार के बादलों को छिन्न-भिन्न करके सम्यदर्शन रूप प्रकाश से पंजाब में पूज्य बूटेरायजी तथा पूज्य आत्मारामजी ने हजारों परिवारों को प्रतिबोध देकर श्रीमहावीर प्रभु द्वारा प्ररूपित सद्धर्म का अनुयायी बनाये थे। इन हजारों परिवारों में पूज्य बूटेरायजी को जिन विद्वान श्रावकों का सहयोग मिला था उनकी नगर-वार सूची यहाँ लिखते हैं। खेद है कि आज श्रावकवर्ग प्रायः आगमज्ञान आदि का अभ्यासी नहीं रहा । आज के दूषित वातावरण से जैनधर्म के संरक्षण के लिये परमावश्यक है कि आज भी श्रमण-श्रमणी, श्रावक-श्राविका रूप
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
[214]