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सद्धर्मसंरक्षक रखा । यह मालेरकोटला (पंजाब) का अग्रवाल बनिया था। (इसने स्थानकमार्गी दीक्षा वि० सं० १९११ में पंजाब में ली थी)।
पूज्य गुरुदेव अपने शिष्य गणि मूलचन्द तथा अन्य शिष्यपरिवार के साथ श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा करने गये । जब से गुरुदेव पंजाब से होकर पुनः गुजरात पधारे थे तभी से आपकी इच्छा शीघ्रातिशीघ्र श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा करने की थी। परन्तु अहमदाबाद में मुँहपत्ती की चर्चा छिड जाने के कारण यात्रार्थ न पधार सके थे । श्रीसिद्धगिरि की यात्रा कर गुरुदेवने वि० सं० १९३० (ई० स० १८७३) का चौमासा पालीताना में ही किया । चौमासे उठे ग्रामानुग्राम विचरते हुए आप भावनगर में पधारे
और वि० सं० १९३१ (ई० स० १८७४) का चौमासा भावनगर में किया। श्रीबूटेरायजी और शांतिसागरजी ___ हम पहले लिख आये हैं कि वि० सं० १९२९ में रतनविजय आदि के साथ मुँहपत्ती-चर्चा के समय नगरसेठ ने कहा था - "खरतरगच्छीय श्रीनेमसागर के शिष्य श्रीशांतिसागरजी के साथ पूज्य गुरुदेव का गाढ स्नेह है ।" उन शांतिसागरजी ने जिनवल्लभसूरिकृत संघपट्टक पर जिनपतिसूरि द्वारा रचित टीका का गुजराती भाषांतर लिखते हुए उसकी जो प्रस्तावना लिखी है उसमें पूज्य गुरुदेवश्री बूटेरायजी के विषय में चैत्यवासियों तथा स्थिरवासी साधुओं की चर्चा करते हुए लिखा है कि
"श्रीवीरप्रभु के साधु 'निग्रंथ' नाम से पहचाने जाते थे । निग्रंथ शब्द का अर्थ है - 'ग्रंथरहित' । ग्रन्थ शब्द का अर्थ है - 'गाँठ' । अर्थात् राग-द्वेषरूपी अभ्यंतर तथा धन-दौलत, वसती,
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5
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