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सद्धर्मसंरक्षक चर्चा चालू कर देंगे। यदि ये लोग मुँहपत्ती की बात को नहीं मानेंगे तो उन्हें निह्नव प्रसिद्ध कर देंगे और कहेंगे कि अहमदाबाद के सकल श्रीसंघ ने इन्हें निह्नव स्थापित कर दिया है। यदि पूछेगे कि 'इनको निन्हव स्थापित क्यों किया है ?' तो कहेंगे कि 'ये पूर्वाचार्यों की धारणा को नहीं मानते, इसलिये इनको गच्छबाहर कर दिया है।'
अब क्या करें ! योजना कैसे बन पायेगी? इनके पक्ष में तो नगरसेठ हो गया है। अब चलो नगरसेठ के पास, वहाँ जाकर जो बात बने सो ठीक है।"
रतनविजय आदि साधु लोग नगरसेठ के वहाँ जा पहुंचे और आसन बिछाकर बैठ गये। उस समय सेठ के पास और भी कई भाई बैठे थे । उनमें से एक भाई का नाम धौलसा था । उससे रतनविजय ने पूछा - "भाई धौलसा ! इस समय तुम्हारी आयु करीब पैंतालीस वर्ष की होगी?" धौलसा ने कहा- 'मेरी आयु पचास वर्ष की है।' प्रेमाभाई विचक्षण और महाचतुर थे । सरकार में आपको न्याय-इन्साफ करने का अधिकार था । आपका किया हुआ इन्साफ सरकार को भी मान्य होता था । रतनविजय की बात को सेठ ताड गया । नगरसेठ ने इन साधुओं से कहा कि "आप धौलसा से क्या पूछना चाहते हैं? मेरी आयु साठ वर्ष की है, जो बात पूछनी हो मुझसे पूछिये ।" तब वे बोले - "सेठ साहब ! आपने अपनी सारी उम्र में किसी भी साधु को कानों में मुंहपत्ती डाले बिना व्याख्यान करते देखा है?" तब सेठ ने कहा - "मैंने तो कोई नहीं देखा। मेरे पिताजी का देहांत सत्तर वर्ष की आयु में हुआ था, वे भी कहते थे कि कोई नहीं देखा । जब से मुनिराज श्रीबूटेरायजी आये हैं, तब से देखा है । मूलचन्दजी और वृद्धिचन्दजी को भी
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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