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प्रत्याघात और मुँहपत्ती - चर्चा
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देखा है कि वे कानों में मुंहपत्ती नहीं डालते ।" तब ये साधु बोले “सेठजी ! हमने आपसे पूछे बिना नोतरा ( बुलावा) दिया है, यह हम से भूल हो गई है । यदि यह बात सच है कि पूर्व से लेकर आजतक बडे-बडे आचार्य प्रमुख हो गये हैं जो कानों में मुँहपत्ती डालकर व्याख्यान करते आ रहे हैं, तो क्या इस बात को उठाना उचित नहीं है ?" सेठने कहा- "महाराज ! आचार्यों ने कई प्रकार की जुदा-जुदा सामाचारियाँ चला रखी हैं। न तो आज तक उनको किसीने एक प्रकार से किया और न ही उन्हें हटाया है और हटाया जाना संभव भी नहीं है ।" साधु बोले- "सेठजी ! यदि हमारे तपागच्छ का कोई संवेगी नयी प्रथा चलावे तो उसे शिक्षा देनी ही चाहिये । इसलिये संघ इकट्ठा होकर इस बात का निर्णय करे ।" सेठ ने कहा – “अच्छी बात है, पर यदि चर्चा में बहुत लोग इकट्ठे होंगे तो किसी की मति कैसी है किसी की कैसी है। भांत भांत की बातें करेंगे । कोई कुछ कहेगा और कोई कुछ कहेगा । ऐसी परिस्थिति में झगडा हो जाना भी संभव है । इसलिये यह बात अच्छी नहीं है । जो लोग इकट्ठे होंगे उनमें कोई मूलचन्दजी का अनुरागी होगा तो कोई वृद्धिचन्दजी का अनुरागी होगा। मूलचन्दजी तथा वृद्धिचन्दजी भी आगम सूत्रों, निर्युक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका (पंचांगी) के जाननेवाले विद्वान हैं। मूलचन्दजी के साथ मुनिराज बूटेरायजी भी आवेंगे। यदि बूटेरायजी आयेंगे तो खरतरगच्छ के साधु नेमसागरजी के शिष्य मुनि शांतिसागर भी आवेंगे । उनका यहाँ बहुत प्रभाव है क्योंकि वह भी बहुत विद्वान है, सूत्र टीका ग्रंथादि खूब पढे हुए हैं और वह भी मुनिराज बूटेरायजी के साथ सहमत होकर कानों में मुँहपत्ती नहीं
१. अहमदाबाद का बंधारण है कि संघ की मीटिंग नगरसेठ की आज्ञा से ही बुलाई जावे ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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