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________________ और तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में है और मुझे ऐसा लग रहा है कि इसमें कुछ भी नहीं है। और अभी मैं तुम्हारा हाथ हाथ में लेकर सीढ़ियां उतरता था, वहां सामने से एक स्त्री जाती थी, एक क्षण को मैं तुम्हें भूल गया और वह स्त्री ही मेरी नजर में थी और मेरे मन में हुआ, काश यह स्त्री मुझे मिल जाए! स्त्री तो घबड़ा गई होगी कि यह कैसे पागल आदमी से मिलना हो गया है। जो कल तक पागल था कि विवाह कर लो और जो आज विवाह की घंटियां बज रही हैं, विवाह हुआ है और वह हाथ पकड़ कर यह कह रहा है कि मेरा मन तुम पर से चला गया। वह जो स्त्री जाती थी उसे देख कर मुझे लगा कि काश इससे मेरा विवाह हो जाए। इससे दुख मत मानना। क्योंकि वह स्त्री भी होती और मेरा विवाह उससे हुआ होता, तो यही मेरे साथ होना था। इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है, मेरा मन ऐसा है। हमारा मन ऐसा है। स्थितियों का कोई कसूर नहीं है कि वे दुख देती हैं और स्थितियों का कोई कसूर नहीं है कि वे सुख देती हैं, हमारा मन ऐसा है। जो व्यक्ति इस मन की इस स्थिति के प्रति सजग नहीं होगा वह दुख से बचना चाहेगा और सुख खोजना चाहेगा, जो कि दुनिया में सबसे गहरा पागलपन का लक्षण है। दुख से बचना चाहना और सख की खोज करना। क्योंकि दुख से आप बच रहे हैं वह सुख का ही रूप है और जिस सुख को आप खोज रहे हैं वह दुख का ही रूप है। इसलिए दुख से आप बच कर अगर सुख को पाएंगे तो आप पाएंगे उसमें भी सुख नहीं है, भीतर से उसमें से भी दुख के दर्शन होंगे। इसलिए सब सुखों की यह खूबी है कि पाते ही से व्यर्थ हो जाते हैं। जब तक आप नहीं पाते-कामना में, आशा में, आकांक्षा में सुख होते हैं और जैसे ही आप पा लेते हैं, आप पाते हैं हाथ में राख आ गई, वहां कुछ भी नहीं है। जिनको फूलों समझ कर, फूल समझ कर जिनके पीछे दौड़े थे, जब हाथ मुट्ठी हम बांध पाते हैं और खोलते हैं तो पाते हैं, फूल तो दूर हो गए हैं वहां राख हाथ में रह गई है। फल कभी भी किसी आदमी के हाथ में नहीं आते. राख ही आती है। फूल फिर दूर दिखाई पड़ने लगते हैं कि वे लगे हुए हैं। और तब फिर हमारी यात्रा शुरू हो जाती है। दुनिया में यदि कोई व्यक्ति सुख के भ्रम से जाग जाए, तो राजपथ से उतर जाता है और पगडंडियों पर, निजी, व्यक्तिगत पगडंडियों पर उसकी खोज शुरू हो जाती है। और जो आदमी सुख के भ्रम में चलता चला जाता है, वह भीड़ में और राजपथ पर होता है। महावीर एक दिन राजपथ को छोड़ दिए और उतर गए। और यह उतरे इसलिए कि यह दिख गया कि सुख जिसे हम कहते हैं, वह छिपा हुआ दुख है। और जिसे हम दुख कहते हैं, वह छिपा हुआ सुख है। वे दोनों एक ही चीज के दो नाम हैं। उनमें बहुत बुनियाद में कोई अंतर नहीं है। और जब किसी को यह दिखाई पड़ जाए कि सुख और दुख एक ही चीजें हैं, तो फिर उसकी नई खोज शुरू होती है। और वह खोज शांति की होती है। वह खोज सुख और दुख के बीच चुनाव की नहीं होती, बल्कि दोनों से हट जाने की और दोनों से मुक्त हो जाने की होती है। ___ महावीर को सुख का भ्रम टूट गया तो सत्य की खोज शुरू हुई। सुख के भ्रम के टूटने का क्षण ही सत्य के अनुसंधान की यात्रा का प्रारंभिक चरण है। तो जिनकी सुख की खोज की यात्रा चल रही हो वे स्मरण रखें कि सत्य से उन्हें अभी कोई संबंध नहीं है। और ऐसा न समझें 160
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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