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राजा भागा हुआ बाहर आया, कौन था यह आदमी! बहुत खोजा, वह आदमी मिला नहीं। लेकिन उस रात राजा का एक सपना टूट गया। उस रात उसकी नींद ही नहीं टूटी उस ऊपर चलने वाले आदमी से, उसकी और भी गहरी नींद टूट गई। रात उसे खोजा, वह नहीं मिला। सुबह राजा को खोजा, राजा भी नहीं मिला। वह महल में वह आदमी तो मिला ही नहीं जिसने रात यह कहा था, सुबह लोगों ने खोजा, राजा भी महल में नहीं था। वह लिख कर रख गया था कि मेरी समझ में आ गया कि छप्पर पर ऊंट नहीं मिल सकता तो संसार में सुख नहीं मिल सकता है।
महावीर को भी ऐसा दिखाई पड़ा। जिनके पास भी आंखें हैं, उन्हें यह दिखाई पड़ेगा। और इस दिखाई पड़ने में कोई बड़ी सूक्ष्म, कोई बहुत बड़ी गहरी तार्किक या कोई बड़ी बौद्धिक बात नहीं है। थोड़ी भी आंख खुली हो और होश हो तो यह हम सबको दिखाई पड़ना ही चाहिए। यह इसलिए दिखाई पड़ना चाहिए कि इसके राज को थोड़ा समझने की जरूरत है।
हम सारे लोग ही सुख को खोजते हैं। ऐसा मनुष्य जमीन पर पैदा नहीं होता जो सुख को न खोजता हो। सभी सुख को खोजते हैं और सभी कष्ट से और पीड़ा से बचना चाहते हैं। सभी दुख से बचना चाहते हैं। हमारे प्राण का कुछ स्वभाव ऐसा होगा। हमारी कुछ आत्मा की, बहुत स्वरूप की आकांक्षा ऐसी होगी कि हम दुख से बचना चाहते हैं और सुख की आकांक्षा करते हैं।
महावीर में और हममें या किसी और में इस बात में कोई भेद नहीं है कि हम सुख को खोजना चाहते हैं। लेकिन भेद एक सीमा पर शुरू हो जाता है कि जिस दिशा में हम सुख को खोजना चाहते हैं, एक सीमा पर हम पाते हैं कि महावीर उस राजपथ को छोड़ कर किसी अकेली पगडंडी पर चल पड़े। जिस पर हम सारे लोग चल रहे हैं राजपथ पर सुख की खोज में, इक्कादुक्का लोग कभी-कभी उस राजपथ से नीचे उतर जाते हैं और जंगल में अकेले भटकने लगते हैं। इस तथ्य को देखना जरूरी है कि एक सीमा तक हम सारे लोग सुख खोजते हैं, लेकिन इस सुख की खोज के मार्ग पर कुछ लोग रास्ता नीचे छोड़ देते हैं और अकेली पगडंडियों पर चले जाते हैं। ये लोग कुछ अदभुत हमें मालूम पड़ते हैं, इसलिए हम इनकी पूजा करते हैं। ये कुछ बड़े अजीब मालूम पड़ते हैं, इसलिए इनका आदर करते हैं और लंबे समय तक स्मरण रखते हैं। लेकिन पछना जरूरी यह है कि क्या यह राजपथ जिस पर हम सब हैं गलत हैअगर महावीर सही हैं तो यह राजपथ गलत होना चाहिए जिस पर हम हैं।
इसको स्मरण रखें। अगर महावीर को सही मानते हैं तो अपने को गलत मानना ही होगा, और कोई उपाय नहीं है। और या फिर अपने को सही मानते हों तो महावीर का पीछा छोड़ देना चाहिए, वे फिर गलत होंगे। ये पगडंडी से जो लोग उतर जाते हैं, राजपथ से भटक जाते हैं, या तो ये लोग गलत हैं, एकबारगी इन्हें हटा देना चाहिए मन से। तो इनसे छुटकारा हो जाए। इनकी स्मृति से, इनकी याद से, हजारों वर्षों तक इनके खयाल से हम मुक्त हो जाएं। और या फिर दूसरे तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि यह जो राजपथ पर भीड़ चल रही है, यह जरूर कुछ गलत होगी। क्योंकि इस भीड़ में सारे लोगों का आदर और सम्मान उन लोगों को मिलता है जो कि इस भीड़ के पथ को छोड़ कर किनारे पर हट जाते हैं।
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